Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 562
________________ ૫૪૬ કલશામૃત ભાગ-૪ જીવની શયન અવસ્થા (સવૈયા એકત્રીસા) काया चित्रसारीमैं करम परजंक भारी, मायाकी संवारी सेज चादरि कलपना। सैन करै चेतन अचैतना नींद लियें, ___मोहकी मरोर यहै लोचनको ढपना।। उदै बल जोर यहै स्वासकौ सबद घोर, विषै-सुख कारजकी दौर यहै सपना। ऐसी मूढ़ दसामैं मगन रहै तिहूं काल , धावै भ्रम जालमैं न पावै रूप अपना।।१४।। (१०-१४-१36) જીવની જાગૃત દશા (સવૈયા એકત્રીસા) चित्रसारी न्यारी परजंक न्यारौ सेज न्यारी, चादरि भी न्यारी इहां झूठी मेरी थपना। अतीत अवस्था सैन निद्रा वाहि कोऊ पै, ___ न विद्यमान पलक न यामैं अब छपना।। स्वास औ सुपन दोऊ निद्राकी अलंग बूझै , सुझै सब अंग लखि आतम दरपना। त्यागी भयौ चेतन अचेतनता भाव त्यागि, भालै दृष्टि खोलिक संभालै रूप अपना।।१५।। (१०-१५-१35) જાગૃત દશાનું ફળ (દોહરા) इहि विधि जे जागे पुरुष, ते शिवरूप सदीव। जे सोवहि संसारमैं, ते जगवासी जीव।।१६ ।। (सश-१६-१७७)

Loading...

Page Navigation
1 ... 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572