Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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કલશામૃત ભાગ-૪ જીવની શયન અવસ્થા (સવૈયા એકત્રીસા) काया चित्रसारीमैं करम परजंक भारी,
मायाकी संवारी सेज चादरि कलपना। सैन करै चेतन अचैतना नींद लियें,
___मोहकी मरोर यहै लोचनको ढपना।। उदै बल जोर यहै स्वासकौ सबद घोर,
विषै-सुख कारजकी दौर यहै सपना। ऐसी मूढ़ दसामैं मगन रहै तिहूं काल , धावै भ्रम जालमैं न पावै रूप अपना।।१४।।
(१०-१४-१36)
જીવની જાગૃત દશા (સવૈયા એકત્રીસા) चित्रसारी न्यारी परजंक न्यारौ सेज न्यारी,
चादरि भी न्यारी इहां झूठी मेरी थपना। अतीत अवस्था सैन निद्रा वाहि कोऊ पै,
___ न विद्यमान पलक न यामैं अब छपना।। स्वास औ सुपन दोऊ निद्राकी अलंग बूझै ,
सुझै सब अंग लखि आतम दरपना। त्यागी भयौ चेतन अचेतनता भाव त्यागि, भालै दृष्टि खोलिक संभालै रूप अपना।।१५।।
(१०-१५-१35)
જાગૃત દશાનું ફળ (દોહરા) इहि विधि जे जागे पुरुष, ते शिवरूप सदीव। जे सोवहि संसारमैं, ते जगवासी जीव।।१६ ।।
(सश-१६-१७७)

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