Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૫૪૪
કલશામૃત ભાગ-૪ સમ્યજ્ઞાન વિના સંપૂર્ણ ચારિત્ર નકામું છે. (સવૈયા એકત્રીસા) जो नर सम्यकवंत कहावत,
सम्यकग्यान कला नहि जागी। आतम अंग अबंध विचारत,
धारत संग कहै हम त्यागी।। भेष धरै मुनिराज-पटंतर,
अंतर मोह-महानल दागी। सुन्न हिये करतूति करै पर, सो सठ जीव न होय विरागी।।८।।
(सश-८-१30)
ભેદવિજ્ઞાન વિના સમસ્ત ચારિત્ર નકામું છે. (સવૈયા તેવીસા) ग्रन्थ रचै चरचै सुभ पंथ,
लखै जगमैं विवहार सुपत्ता। साधि संतोष अराधि निरंजन,
देइ सुसीख न लेइ अदत्ता।। नंग धरंग फिरै तजि संग ,
छकै सरवंग मुधारस मत्ता। ए करतूति करै सठ पै, समुझै न अनातम-आतम-सत्ता।।९।।
(-८-१३१)
पणीध्यान धरै करै इंद्रिय-निग्रह,
विग्रहसौं न गनै निज नत्ता। त्यागि विभूति विभूति मढे तन,
जोग गहै भवभोग-विरत्ता।।

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