Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૫૪૨
કલશામૃત ભાગ-૪ નિર્જરા દ્વારા
प्रतिशत (Eas) वरनी संवरकी दसा, जथा जुगति परवान। मुकति वितरनी निरजरा, सुनहु भविक धरि कान।।१।।
__ (११-१-१२७)
भंगाय२४॥ (यो ) * जो संवरपद पाइ अनंदै।
सो पूरवकृत कर्म निकंदै।। जो अफंद है बहुरि न फंदै। सो निरजरा बनारसि बंदै।।२।।
(सश-२-१२४)
જ્ઞાન-વૈરાગ્યના બળથી શુભાશુભ ક્રિયાઓથી પણ બંધ થતો નથી.
(Eas ) * महिमा सम्यकज्ञानकी, अरु विरागबल जोइ। क्रिया करत फल भुंजते, करम बंध नहि होइ।।३।।
( श-3-१२५)
ભોગ ભોગવવા છતાં પણ જ્ઞાનીઓને કર્મકાલિમા લાગતી નથી.
(सवैया भेऽत्रीस) जैसैं भूप कौतुक सरूप करै नीच कर्म,
कौतुकी कहावै तासौं कौन कहै रंक है। जैसैं विभचारिनी विचारै विभचार वाकौ ,
जारहीसौं प्रेम भरतासौं चित्त बंक है।। जैसैं धाइ बालक चुंघाइ करै लालिपालि ,
जानै ताहि औरकौ जदपि वाकै अंक है।

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