Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૫૪)
કલશામૃત ભાગ-૪ આત્મસ્વરૂપની પ્રાપ્તિ થતાં ભેદજ્ઞાન હેય છે (દોહરો) भेदग्यान तबलौं भलौ, जबलौं मुकति न होइ। परम जोति परगट जहां, तहां न विकलप कोइ।।७।।
(१-७-११८)
ભેદજ્ઞાન પરંપરા મોક્ષનું કારણ છે. (ચોપાઈ) * भेदज्ञान संवर जिन्ह पायौ।
सो चेतन सिवरूप कहायौ।। भेदग्यान जिन्हके घट नांही। ते जड़ जीव बंधैं घट मांही।।८।।
(सश-८-११८)
ભેદજ્ઞાનથી આત્મા ઉજ્જવળ થાય છે. (દોહરા) भेदग्यान साबू भयौ , समरस निरमल नीर। धोबी अंतर आतमा, धोवै निजगुन चीर।। ९ ।।
(सश-८-१२०)
ભેદવિજ્ઞાનની ક્રિયામાં દષ્ટાંત (સવૈયા એકત્રીસા) जैसे रजसोधा रज सोधिक दरब काळे,
पावक कनक काढ़ि दाहत उपलकौं। पंकके गरभमैं ज्यौं डारिये कतक फल,
नीर करै उज्जल नितारि डारै मलकौं।। दधिकौ मथैया मथि का? जैसे माखनकौं,
राजहंस जैसे दूध पीवै त्यागि जलकौं। तैसैं ग्यानवंत भेदग्यानकी सकति साधि, वेदै निज संपति उछेदै पर-दलकौं।।१०।।
(१२-१०-१२१)

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