Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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પ૩૮
કલશામૃત ભાગ-૪ સંવ૨ દ્વા૨
प्रतिशत ( २३) आस्रवकौ अधिकार यह, कह्यौ जथावत जेम। अब संवर वरनन करौं , सुनहु भविक धरि प्रेम।।१।।
(११-१-११२)
A
જ્ઞાનરૂપ સંવરને નમસ્કાર (સવૈયા એકત્રીસા) आतमको अहित अध्यातमरहित ऐसौ,
__ आस्रव महातम अखंड अंडवत है। ताकौ विसतार गिलिबेकौं परगट भयौ,
ब्रहमंडकौ विकासी ब्रहमंडवत है।। जामैं सब रूप जो सबमैं सबरूपसौ पै,
सबनिसौं अलिप्त आकास-खंडवत है। सोहै ग्यानभान सुद्ध संवरको भेष धरै, ताकी रुचि-रेखकौ हमारी दंडवत है।।२।।
(लश-२-११३)
ભેદવિજ્ઞાનનું મહત્ત્વ (સવૈયા એકત્રીસા) सुद्ध सुछंद अभेद अबाधित,
भेद-विग्यान सुतीछन आरा। अंतरभेद सुभाव विभाऊ,
करै जड़-चेतनरूप दुफारा।। सो जिन्हके उरमैं उपज्यौ,
न रुचै तिन्हकौं परसंग-सहारा। आतमको अनुभौ करि ते, हरखें परखें परमातम-धारा।।३।।
( श-3-११४)

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