Book Title: Jivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 6
________________ प्रस्तुति शिक्षा और समाज-व्यवस्था में गहरा अनुबंध है। शिक्षा समाज-व्यवस्था के अनुरूप होकर ही समाज को लाभान्वित कर सकती है। उसका काम है समाज-व्यवस्था को गतिशील बनाने वाले व्यक्तित्वों का निर्माण। हिन्दुस्तान लोकतंत्रीय समाजवादी समाज-व्यवस्था का संकल्प लिए चल रहा है। लोकतंत्र का आधार है जनमत का सम्मान और समाजवादी व्यवस्था का आधार है सामाजिक न्याय। इनकी संपूर्ति के लिए आर्थिक संतुलन और तकनीकी विकास जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक है नैतिक या चारित्रिक विकास। समाजवाद की दुहाई के चार दशक बीत जाने पर भी जातिवाद, संप्रदायवाद, प्रांतीय और भाषाई अलगाववाद का दृष्टिकोण नहीं बदला है, आर्थिक विषमता में अन्तर नहीं आया है। क्या इसमें शिक्षा-प्रणाली का कोई दोष नहीं है? यदि शिक्षा के द्वारा लोकतंत्रीय मूल्यों का विकास नहीं होता है तो उसकी सार्थकता में संदेह किया जा सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में आज संदेह का वातावरण बना हुआ है। विद्यार्थी का भविष्य क्या है? यह प्रश्न आर्थिक परिप्रेक्ष्य में भी उभरता है और वैयक्तिक जीवन के संदर्भ में भी। मनुष्य केवल सामाजिक नहीं है और वह केवल व्यक्ति भी नहीं है। वह संबंधों के कारण सामाजिक है और जन्मजात वैयक्तिकता (नेटिव इण्डिविचेलिटी) के कारण व्यक्ति है। शिक्षा में सामाजिक और वैयक्तिक- दोनों पहलुओं का समन्वय आवश्यक है। इसके द्वारा ही आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक मूल्यों का सामंजस्य पूर्ण विकास किया जा सकता है। जीवन-विज्ञान मूल्यपरक शिक्षा की समन्वयात्मक प्रयोग-पद्धति है। उसमें सोलह मूल्य निर्धारित किए गए हैं। उनका.वर्गीकरण इस प्रकार है १. सामाजिक मूल्य- (१) कर्तव्यनिष्ठा (२) स्ववलम्बन। २. बौद्धिक-आध्यात्मिक मूल्य (३) सत्य, (४) समन्वय, (५) सम्प्रदाय निरपेक्षता (६) मानवीय एकता ३. मानसिक मूल्य- (७) मानसिक संतुलन (८) धैर्य। ४. नैतिक मूल्य (९) प्रामाणिकता, (१०)करुणा (११)सह-अस्तित्व। ५. आध्यात्मिक मूल्य- (१२)अनासक्ति, (१३)सहिष्णुता, (१४)मृदुता (१५)अभय, (१६)आत्मानुशासन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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