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शिक्षा और नैतिकता
नहीं की जा सकती। दोनों में इतना गहरा संबंध है कि एक दूसरे के बिना एक दूसरे की गति ही नहीं है
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शरीर को समझने के लिए दो तंत्रों पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। एक है नाड़ीतंत्र और दूसरा है ग्रंथितंत्र |
हमारे स्वभाव और भाव बदलते रहते हैं । एक आदमी अभी प्रसन्न है, थोड़ी देर बाद उदास हो जाएगा, थोड़ी देर बाद क्रुद्ध हो जाएगा। परिवर्तन होता रहता है। ऐसा क्यों होता है, इस पर शरीरशास्त्रियों ने भी विचार किया है। ग्रीक शरीरशास्त्री हिपोक्रेटस ने मनुष्यों को चार श्रेणियों में बांटा है- १. वातवृत्ति २. पित्तवृत्ति ३. कफवृत्ति ४. रक्तवृत्ति । वातवृत्ति वाला व्यक्ति उदास और खिन्न रहता है । पित्तवृत्ति वाला गुस्सैल होता है। वह बात-बात में उत्तेजित और कुपित हो जाता है । कफवृत्ति वाला ठंडा होता है, पर लालची अधिक होता है । रक्तवृत्ति वाला सदा प्रसन्न रहता है। हमारे शरीर में चार द्रव्य हैं - वात, पित्त, कफ और रक्त । इनके आधार पर मनुष्य चार श्रेणियों में बंट गया । आदमी की प्रवृत्ति और स्वभाव के पीछे ये तत्व काम करते हैं। आदमी पहले चिड़चिड़ा नहीं था, पर बाद में चिड़चिड़ा हो जाता है। शरीरशास्त्री कहेगा कि कहीं इसका लीवर तो खराब नहीं है। होम्योपैथिक डाक्टर भी स्वभाव के आधार पर निर्णय लेगा कि यह चिड़चिड़ा है तो इसका लीवर खराब होना चाहिए। बीमारियों के कारण आदमी का भाव बदल जाता है, स्वभाव बदल जाता है । ग्रंथियों का संतुलन बिगड़ने पर भी स्वभाव बदल जाता है। जब थायरायड ग्रंथि ठीक काम नहीं करती है तब उत्तेजना आने लग जाती है, निराशा छा जाती है। गोनाड्स के अतिसक्रिय होने से आदमी स्वार्थी बन जाता है। जब स्वार्थ, उत्तेजना, क्रोध आदि हैं तो फिर नैतिकता की बात कैसे होगी? नैतिकता में बहुत बड़ी बाधा है स्वार्थ | स्वार्थ की बात कम हो जाती है तो अनैतिकता स्वतः कम हो जाती है, समाप्त हो जाती है।
बहुत प्रयत्न करने पर भी अनैतिकता का प्रश्न समाहित नहीं हो रहा है। इसका कारण यह है कि हमारा ध्यान बातावरण और परिवेश तक केंन्द्रित है। हम सारी समीक्षा वातावरण, परिस्थिति और
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