Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 144
________________ समाज का आधार : अहिंसा की आस्था १३३ एक व्यक्ति के पास फ्रीज है. पंखा है, वातानुकूलन है। ये सारी सुविधाएं उसे प्राप्त हैं। मोटरकार है, रेडियो है, टेलीविजन है, सब कुछ है तो दूसरा व्यक्ति भी ललचाएगा। वह सोचेगा कि इसको इतनी सुविधा प्राप्त है तो मुझे क्यों नहीं होनी चाहिए ? एक वह जमाना था कि यदि किसी बड़े आदमी को सुविधा प्राप्त होती तो वह यह सोचता कि मैं तब तक उस सुविधा का भोग नहीं करूंगा जब तक वह सर्वसुलभ न बन जाए। जो बड़ा आदमी है, जिसे सब कुछ प्राप्त है, वह उसको त्यागेगा और संयम में रहेगा तो दूसरों के मन में एक निष्ठा पैदा होगी। महामात्य चाणक्य को उद्धृत किया जा सकता है। मुद्राराक्षस ग्रन्थ में चाणक्य का जो वर्णन किया है, वह हृदयवेधी और मार्मिक है। चाणक्य एक कुटिया में रहता था। वहां कुछ उपले पड़े थे। कुछ पत्थर पड़े थे। कुछ चीजें पड़ी थीं। इतनी साधारण कुटिया, इतने साधारण उपकरण कि जिनके बारे में सोचा ही नहीं जा सकता। वह एक बड़े साम्राज्य का प्रधानमंत्री, सर्वेसर्वा, संचालक इतनी साधारण स्थिति में रह सकता है, कल्पना नहीं की जा सकती। अकाल का मौसम । सर्दी आई। सर्दी में गरीबों की बुरी हालत थी। जनता के द्वारा नए कंबल इकट्ठे किए गए। कंबलों का ढेर लगा है कुटिया के पास और माहमात्य चाणक्य अपनी कुटिया में सो रहा है। चोरों का मन कंबल चुराने के लिए ललचा गया। चोरों ने सोचा, चोरी का अच्छा अवसर है और अवसर को खोना भी समझदारी की बात नहीं है। उन्होंने नए कंबल उठा लिए। फिर भीतर देखा और जब आदमी भीतर देखता है तब मन: स्थिति बदल जाती है। भीतर कुटिया में देखा कि महामात्य चाणक्य सो रहा है और वह एक पुराना कंबल ओढ़े हुए है। यह देख चोरों का दिल भी बदल गया। उन्होंने सोचा, इतने सारे कंबल पड़े हैं, इतना सब कुछ है, फिर भी महामात्य मात्र एक पुराना कंबल लपेटे सो रहे हैं और हम चोरी करके कंबल ले जा रहे हैं। दिल बदल गया। सारे कंबल वहीं छोड़कर चले गए। ये बातें कहानी जैसी लगती हैं। आज हमारी समझ में नहीं आतीं कि ऐसा भी हो सकता है क्या? आज के चिंतन में ये बातें फिट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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