Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 142
________________ समाज का आधार : अहिंसा की आस्था १३१ प्राचीन काल की घटना है । एक व्यक्ति के मन में ज्ञान की गहरी पिपासा थी । उसे पता चला कि ४० कोस की दूरी पर एक लुहार रहता है । वह बहुत बड़ा ज्ञानी है। वह उसके पास पहुंचा और अपनी प्रार्थना प्रस्तुत की कि मैं ज्ञान प्राप्ति के लिए आया हूं। लुहार ने कहा- बैठो और इस धौंकनी की रस्सी को पकड़ लो । लुहार धौंकनी धौंक रहा है, वह रस्सी पकड़े बैठा है। बैठा रहा। दिन पूरा हो गया। कुछ भी नहीं बताया। दूसरा दिन बीता, तीसरा दिन बीता। दिन ही नहीं बीते वर्ष बीत गया। वह बार बार कहता रहा कि मैं धौंकनी चलाने के लिए नहीं आया हूं, ज्ञान की प्यास लिया आया हूं। लुहार बात को सुनी-अनसुनी करता रहा। दस वर्ष बीत गए । लुहार एक दिन उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा- तुम अपने घर चले जाओ। जो पाना था, वह तुम पा चुके । तुम्हारी कसौटी हो गई। तुम पात्र हो, तुममें इतनी सहिष्णुता है कि दस वर्ष का समय ज्ञान - प्राप्ति के लिए लगा सकते हो । अब कुछ भी मिलना शेष नहीं है, तुम्हें जो कुछ मिलना चाहिए था, वह मिल गया । , यह कल्पना जैसी बात लगती है। आज किसी विद्यार्थी से अध्यापक कहे कि यह झाडू लो और दस वर्ष तक सफाई करो तो दस वर्ष तो क्या दस घंटा भी हो जाए तो बड़ी मुश्किल लगती है। वह सोचेगा, पूरा दिन निकम्मा चला गया, कुछ पढ़ाया ही नहीं । आज इतनी अस्थिरता है आदमी में । आज के आदमी में वैचारिक, सांस्कृतिक और चैतसिक अन्तर आया है । वह इतना त्वरितगामी हो गया कि वह किसी बात को सहन नहीं कर सकता। इस असहिष्णुता ने हिंसा को जन्म दिया । असहिष्णुता बढ़ी है सुविधावादी दृष्टिकोण के कारण। अगर थोड़ी सुविधा न मिले तो व्यक्ति सब कुछ करने को तैयार है । हमारा लक्ष्य किसी तत्त्व को या परम तत्त्व को, परा- विद्या को या अपराविद्या को पाना नहीं रहा । लक्ष्य केवल बया सुविधा का । जहां सुविधा मिले वहां रहना । बात है तो व्यंग्य की, पर इस प्रसंग में बहुत घटित हो सकती है। आदमी का दृष्टिकोण जैसा होता है, वह वैसे ही सोचता है । एक बनिया मरा और यमराज के पास पहुंचा । यमराज ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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