Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 166
________________ सामाजिक मूल्यों का आधार : सत्य १५५ सत्य का एक अर्थ है-ऋजुता, अछुपाव । छुपाव सारी बुराइयों की जड़ है। कानून एक सत्य है, नियम एक सत्य है। पर बेचारा कानून या नियम क्या करे, जब समाज में छिपाने की अधिक प्रवृत्ति हो। घुमाव में प्रत्यक्षतः बुराई नहीं होती, बुराई भूमिगत होती है। राशन का नियम नहीं है तो दुकानों में अनाज का भंडार भरा है। राशन का नियम आया और दुकानों से अनाज गायब । सब भूमिगत हो जाता है। यह सब छिपाव के कारण होता है। ऋजुता के अभाव में होता है। प्रश्न होता है कि समाज में ऋजुता का विकास किया जा सकता है ? यदि समाज को यथार्थ के आधार पर चलना है, व्यवहार को मानवीय धरातल पर चलना है, उसे स्नेहपूर्ण और मृदुतापूर्ण बनाना है तो ऋजुता को प्रश्रय देना ही होगा, छलना, प्रवंचना, संदेह तथा अविश्वास के भूत को भगाना ही होगा। अन्यथा व्यक्ति व्यक्ति के दुराव को हम मिटा नहीं पाएंगे। दो व्यक्ति पास बैठे हैं, पर उनके भन की दूरी हजारों मील की है। दो व्यक्ति हजारों मील दूर हैं, पर उनका मन निकट है, समीप है। मन की दूरी का कारण है संदेह और छिपाव । मन की निकटता का कारण है ऋजुता और स्पष्टता। प्रत्येक व्यक्ति में अ- ऋजुता का भाव है। यह उसकी दुर्बलता है। वह इस कमजोरी के कारण स्वार्थ और मोहवश अनेक बुराइयों में फंसता है। उसकी यह कमजोरी छूटती नहीं क्योंकि छुपाव में उसका तीव्र रस है। ४. अविसंवादिता सत्य ___सत्य का एक अर्थ है-अविसंवादिता अर्थात् कथनी और करनी की समानता । सामाजिक जीवन के साथ इनका बहुत बड़ा संबंध है। इससे समाज प्रभावी बनता है। ___ जब तक व्यक्ति में राग-द्वेष है, प्रियता- अप्रियता का द्वन्द्व है, तब तक कथनी और करनी, ज्ञान और आचरण की दूरी मिट नहीं सकती, इनमें अविसंवादिता आ नहीं सकती। कथनी और करनी की विसंवादिता को मिटाना, ऊंचे शिखर पर आरोह करने जैसा कार्य है। जैन परंपरा में वीतराग और अवीतराग की सात कसौटियां मान्य हैं। उनमें एक है विसंवादन। जिनमें विसंवादन होता है, कथनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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