Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 165
________________ १५४ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प कपट के साथ उस गण में सम्मिलित हुआ। उसने सामन्तों से मेलजोल बढ़ाया और उनमें परस्पर संदेह के बीज बो डाले। किसी को कुछ और किसी को कुछ कहकर सबमें अविश्वास पैदा कर दिया। वत्सकार ने देखा कि सभी सामंत एक दूसरे के प्रति संदेह के विष से ग्रस्त हो चुके हैं, तब उसने गुप्त रूप से अपने महाराज कोणिक को आक्रमण करने के लिए आह्वान किया। कोणिक अपनी सेना के साथ शत्रु- सीमा पर आ पहुंचा। महाराज चेटक के पास संवाद पहुंचा और उन्होंने रणभेरी बजाने का आदेश दे दिया। रणभेरी बजी, पर एक भी योद्धा रण के लिए तैयार नहीं हुआ । सब एक दूसरे से कहने लगे, भाई ! हम तो कायर हैं, अश्लील हैं। हम क्या लड़ेंगे? जो वीर और शीलवान हों वे जाएं रण में। चेटक अवाक रह गए। कोणिक की सेना ने बिना किसी अवरोध के नगर में प्रवेश किया और विशाल गणतंत्र को अपने अधीन कर डाला । न युद्ध हुआ और न रक्त बहा। बिना कुछ किए ही विजय प्राप्त हो गई। एक महान् गणतंत्र का पतन हो गया। पतन का मूल कारण था संदेह। इस ऋजुतात्मक सत्य का अतिक्रमण करने के कारण समाज ने कितनी कालरात्रियां भोगी हैं, कितनी कठिनाइयों का सामना किया है? ऋजुता में संदेह नहीं पनपता। संदेह नहीं होता है तो अनेक दुर्घटनाएं अपने आप टल जाती हैं। मनमुटाव का एक बड़ा कारण संदेह है, अऋजुता है। सन् १९८५ में हम आमेट में थे। एक साध्वी मेरे पास आकर बोली- आचार्यश्री की मेरे पर कठोर दष्टि है। मैं जब भी वन्दना करने जाती हूं, तब उनकी भृकुटी तनी हुई देखती हूं। मैंने कहा-ऐसा तो नहीं होना चाहिए। मैंने आचार्यश्री से उस साध्वी के विषय में पूछा। आचार्यश्री बोले- 'मैं क्यों उस पर कठोर दृष्टि करूं । मैं अपने काम में होता हूं, मूड में होता हूं, चिन्तन या विचार में होता हूं। उस समय मुद्राएं भिन्न भिन्न होती हैं। वह उस समय वन्दना करने आई होगी, जब मेरी कठोर मुद्रा होगी। पर मैं बिना कारण ही उस पर क्यों कठोर दृष्टि रखू? मैंने साध्वी से आचार्यश्री की बात कही और उसका संदेह मिट गया, वह विश्वस्त हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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