Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 145
________________ १३४ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प नहीं बैठतीं। कोई ऐसा फ्रेम बनाना होगा जिसे विचारों की खिड़की में फिट किया जा सके। आज सांस्कृतिक मूल्यों का अन्तर आ गया और वह आया है हमारे ही दृष्टिकोण के कारण। इन सारी घटनाओं के संदर्भ में हम फिर विचार करें कि यदि सुख और शांति से जीना है तो अहिंसा की आस्था पैदा करनी होगी। अहिंसा की आस्था पैदा करनी है तो सुविधावादी और पदार्थवादी दृष्टिकोण को बदलना होगा। पदार्थ का भोग करते हुए भी, सुविधा का भोग करते हुए भी, दृष्टिकोण सुविधावादी और पदार्थवादी न रहे। यह बहुत संकरी गली है पर इसमें से गुजरे बिना हम सामाजिक मूल्यों के विकास की बात या शांतिपूर्ण जीने की बात सोच ही नहीं सकते। अहिंसा का चौथा तत्त्व है-स्व-नियन्त्रण, अपने आप पर नियन्त्रण। अपने आवेशों पर नियन्त्रण किए बिना अहिंसा की कल्पना ही नहीं की जा सकती। हमारे अनियन्त्रित आवेश ही हमारी वृत्तियों को हिंसक बना रहे हैं। जीवन विज्ञान का प्रयोग स्व- नियन्त्रण का प्रयोग है। इसके द्वारा व्यक्ति अपने आवेगों पर नियन्त्रण प्राप्त करने की कला सीख सकता है। स्व-नियन्त्रण का लाभ है-अपने प्रति अहिंसक होना। हमें जागतिक अहिंसा-सार्वभौम अहिंसा की बात एक बार छोड़ देनी चाहिए। हमारा सीधा प्रयत्न विश्व- शांति, विश्व - बंधुता के लिए होता है। हमें पहले यह सोचना चाहिए कि अपने में शांति और अपने में बंधुता है या नहीं? अपने भाई के साथ तो बंधुता का व्यवहार नहीं है और श्लोक दोहराया जाता है-उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकं । यह कितनी बड़ी विडम्बना हो जाती है। हमें इस बात में बहुत विश्वास होना चाहिए कि अपनी अहिंसा सबसे पहले होनी चाहिए। मैं दूसरे के प्रति अहिंसक बनूं, इससे पहले अपने प्रति अहिंसक बन, इसका विकास होना जरूरी है। हम बहुत लम्बी-चौड़ी बातों में न उलझें। पूरे राष्ट्र की समस्या, विश्व की समस्या, मानवजाति की समस्या-ये घोष बड़े अच्छे लगते हैं, कानों को प्यारे लगते हैं, एक बार दिमाग को झंकृत भी करते हैं, किन्तु निष्पत्ति में बहुत अर्थवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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