Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 146
________________ समाज का आधार : अहिंसा की आस्था १३५ नहीं होते। हमारे लिए सबसे ज्यादा अर्थवान् बात यह होगी कि हम अपने प्रति अहिंसक बनें। जो व्यक्ति अपने प्रति अहिंसक है, वह दूसरे के लिए अभयंकर है और अपने आप में अभयंकर है। किसी के लिए वह खतरा पैदा नहीं करता। अणुबमों का खतरा है, यह स्वीकारते हुए भी हम इस बात को न भूलें कि वह खतरा होगा, नहीं कहा जा सकता। यदि होगा तो सारे संसार को होगा, फिर चिंता की बात ही क्या है? एक सैनिक से किसी ने पूछा-तुम सेना में भर्ती हुए हो, तुम्हें डर नहीं लगता? वह बोला-डर किस बात का? उसने कहा--लड़ाई में जाना पड़ेगा, मौत के मुंह में जाना पड़ेगा। सैनिक बोला-मुझे कोई डर नहीं लगता। मैं सेना में हं, लड़ाई होगी या नहीं होगी, क्या पता? कल्पना करो कि लड़ाई होगी तो मेरा नम्बर मोर्चे पर जाने का आएगा या नहीं आएगा, क्या पता? मेरा नम्बर अगले मोर्चे पर जाने का आएगा तो मै मरूंगा या नहीं मरूंगा क्या पता? यदि मरने का नम्बर आया तो फिर डर किसको लगेगा ? जो मर गया उसे तो डर लगेगा नहीं, तो पहले ही मैं क्यों मरूं ? पहले मरने की जरूरत क्या है? जो व्यक्ति अपने आपमें इतना विश्वस्त होता है वह अपने प्रति अभय और अहिंसक हो जाता है। हम अहिंसा के सिद्धान्त की चर्चा करते हैं और लम्बी- चौड़ी चर्चा करते हैं। वह जब बड़े आदमी के समझ में नहीं आती तो छोटे विद्यार्थी के समझ में कहां से आएगी? हम जीवन विज्ञान के संदर्भ में इस चर्चा को एक नया मोड़ दें। वह यह कि तुम दूसरे की बात छोड़ो, अपने प्रति अहिंसक बनो। अगर तुम अपने प्रति अहिंसक बनोगे तो इसका पहला परिणाम यह होगा कि आत्महत्या से बच जाओगे। ____ आज शिक्षा के क्षेत्र में भी आत्महत्या की बात होती है। विद्यार्थी अनुत्तीर्ण होता है और मरने की बात सोच लेता है। थोड़ा- सा पारिवारिक झंझट हुआ कि मरने की बात सोच लेता है। यह सारा अपने पर नियन्त्रण न कर सकने के कारण होता है। इसलिए स्व- नियन्त्रण की बात बहुत महत्त्वपूर्ण है। हम अपने पर नियन्त्रण कर सकें, यह बहुत मूल्यवान् बात है। जिसने अपने आवेगों पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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