Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 161
________________ १५० जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प एक पूरी प्रक्रिया है परिवर्तन की। इस प्रक्रिया को अपनाए बिना आस्था को बदलने की बात कभी संभव नहीं बनेगी। अहिंसा और उसकी आस्था को उत्पन्न करने का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है--श्रवण, मनन और निदिध्यासन । जब तक शिक्षा के साथ या धर्म की आराधना के साथ ज्ञान और क्रिया-दोनों का योग नहीं होगा, तब तक नहीं लगता कि इस समस्या का समाधान हो जाए। इस योग के बिना न तो धार्मिक अच्छा धार्मिक बन सकता है और न विद्यार्थी अच्छा विद्यार्थी बन सकता है। समाज और नैतिकता के विकास के लिए दो बातें जरूरी हैं-ज्ञान भी हो और अच्छा मानवीय व्यवहार भी हो। मानव मानव के प्रति सद् व्यवहार करे, बुरा व्यवहार न करे। यह तभी संभव है जबकि यह पूरा क्रम-श्रवण, मनन और निदिध्यासन चले। आज सिद्धान्त की बात तो चल रही है, पर अभ्यास वाली बात नहीं चल रही है। जीवन विज्ञान का मूल ध्येय है कि धर्म और विद्या-दोनों क्षेत्रों में सिद्धांत और प्रयोग का योग होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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