Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 160
________________ समाज का आधार अहिंसा का विकास १४६ प्रतिशत भी नहीं होता। तीसरी भूमिका है निदिध्यासन । उससे तो आज मुक्ति ही मिल गई है। इन तीनों का योग ही यथार्थ स्थिति तक पहुंचा सकता है । जीवन विज्ञान की प्रक्रिया में इस फार्मूले पर ध्यान दिया गया कि अच्छे सिद्धान्त को जानना, उस पर मनन करना यानी उसकी अनुप्रेक्षा करना और अनुशीलन करना, निदिध्यासन करना, ये तीनों बातें होती हैं तब किसी नई आस्था का निर्माण होता है। ज्ञान और आचरण की जो दूरी है, वह तब तक नहीं मिट सकती जब तक ये तीनों बातें नहीं आएंगी। इन तीनों का समन्वय हुए बिना परिवर्तन नहीं किया जा सकता । हम खामी तो बहुत निकाल सकते हैं। शिक्षा प्रणाली के बारे में अनेक खामियां निकाली गईं किंतु उनमें क्या सुधार होना चाहिए, क्या रचनात्मक परिवर्तन होना चाहिए, यह बहुत कम सामने आया । एक चित्रकार ने बाजार में अपना चित्र टांग कर नीचे लिख दिया कि इसे देखें और जहां कमी हो वहां चिन्ह लगा दें। सायं जाकर देखा, पूरा चित्र चिन्हों से भर गया था। उसने सोचा, बड़ा अनर्थ हो गया । दूसरे दिन उसने एक चित्र फिर टांगा, लिख दिया कि जहां कोई खामी है, सुधार दें। सांझ को जाकर देखा तो चित्र वैसा का वैसा मिला, कोई परिवर्तन नहीं । हम कमियां बहुत निकाल सकते हैं, त्रुटियों की ओर हमारा ध्यान जा सकता है, बिन्दु लगा सकते हैं, किन्तु जहां सुधारने वाली बात आती है वहां कुछ भी नहीं । हम केवल खामी की बात न पकड़ें, कुछ सृजन करें। सैद्धान्तिक और प्रयोगात्मक । प्रत्येक क्षेत्र में ये दोनों अपेक्षित हैं। पहला पक्ष है-सैद्धान्तिक, जिसमें दो बातें आती हैं-श्रवण और मनन । सिद्धान्त को जानना और उस पर मनन करना, उसकी अनुप्रेक्षा करना, उसका अनुचिंतन करना । दूसरी बात है - प्रयोगात्मक - निदिध्यासन, अभ्यास करना । सुनो, ज्ञान करो, विवेक करो और प्रत्याख्यान करो। जो छोड़ने योग्य है उसका प्रत्याख्यान करो और जो उपादेय है उसका अभ्यास करो । यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170