Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 155
________________ १४४ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प को आक्रामक बना देती है। आज के जो बर्तन हैं, वे देखने में अच्छे लगते हैं। लोग उन बर्तनों में खाना पकाते हैं, दूध गर्म करते हैं, पर वे नहीं जानते कि जस्ते से पुते हुए बर्तनों की चीजें पेट में जाकर कितना नुकसान करती हैं। आज किसी से कहा जाए कि हांडी में दूध गर्म करो, हांडी में खिचड़ी पकाओ तो लोग कहेंगे, किस शताब्दी की बात है। यह तो पिछड़ेपन की बात है। आज की शिष्टता में तो ऐसी चकाचौंध चाहिए, जिसको देखते ही मन ललचा जाए। इस बात का उनको पता नहीं है कि हांडी में गर्म किया हुआ दूध, खिचड़ी, कढ़ी बिलकुल नुकसान नहीं करती और इन बर्तनों में पकाये हुए खाद्य या पेय पदार्थ पेट में जाकर कितना नुकसान करते हैं? भडकाने वाली कितनी वृत्तियां पैदा करते हैं? कलह की वृत्ति, संघर्ष की वृत्ति, उत्तेजना की वृत्ति और असहिष्णुता जो बनी है उसके पीछे अनेक कारणों में यह भी एक कारण है। स्वाद में भी अन्तर रहेगा। कड़ाही में गर्म किए दूध का जो स्वाद होगा, वह कलई चढ़े बर्तन में गर्म किए दूध में कभी नहीं होगा। उपयोग में आने वाले अनेक पदार्थ हमारी वृत्तियों को प्रभावित करते हैं। किन्तु अब सभ्यता या सुविधा के साथ रिथतियां इतनी बदल गईं और मांग इतनी बढ़ गई कि इन स्थितियों में पीछे लौट आना संभव नहीं लगता। आदमी जानते हुए भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि फिर से मिट्टी के बर्तनों में रसोई पकाई जाए। फिर भी हमें इस सचाई को स्वीकार तो करना ही पड़ेगा कि ये परिस्थितियां भी हमारी बदली हुई भावनाओं के कारण पैदा हुई हैं। समग्रदृष्टि से देखें तो शरीर की क्रिया, शरीर में पैदा हुए रसायन और शरीर में जाने वाली धातुएं भी अपना परिणाम जताती हैं और हिंसा की निमित्त बनती हैं। यदि हमारे नाड़ीतंत्र का दायां भाग अधिक सक्रिय होता है तो उद्दण्डता और उच्छंखलता की वृत्ति पैदा होती है। अहिंसा के विकास का पांचवां विघ्न है-अनास्था। हमारी अहिंसा में आस्था नहीं है, अनास्था है। किसी भी व्यक्ति से पूछे, वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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