Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 135
________________ १२४ जीवन विज्ञान : स्वस्थ रामाज रचना का संकल्प मानता है। वहां उसका अपना स्वार्थ है। एक घोड़ा सुविधा के साथ रहता है। उसका स्थान है वातानुकूलित गृह | उसकी सेवा में अनेक नौकर हैं। घोड़े पर जितना खर्च हो रहा है उतना उसके परिचारकों पर नहीं हो रहा है, क्योंकि घोड़ा ज्यादा उपयोगी है। एक रेस का घोड़ा लाखों रुपए या लाखों डालर पैदा करा देता है, जबकि आदमी इसका एक तुच्छ अंश भी लाभ नहीं देता। आदमी की सारी दृष्टि उपयोगिता पर, स्वार्थ और लाभांश पर टिकी हुई है, मानवीय स्तर पर टिकी हई नहीं है। जिन लोगों ने इस सचाई का अनुभव किया उनका व्यवहार बदल गया। मानवीय व्यवहार के लिए सबसे प्रथम बात है कि मनुष्य जाति की एकता में आस्था उत्पन्न हो। ऐसा होने पर क्रूर व्यवहार करना कठिन हो जाता है। अहिंसा का दूसरा सूत्र है-प्रेम, मैत्री का विकास। हिंसा का मूल है घृणा । जब तक घृणा पैदा नहीं होती, आदमी हिंसा कर नहीं सकता। लड़ना होता है, युद्ध करना होता है तो सामने वाले के प्रति घृणा पैदा हो जाती है। यदि यहूदी जाति के प्रति घृणा पैदा नहीं की जाती तो लाखों यहूदियों को बिना मौत नहीं मारा जाता । पहले घृणा पैदा की जाती है और फिर हिंसा की जाती है। आज भी जितना आतंकवाद चल रहा है, वह सारा घृणा के आधार पर चल रहा है। आतंकवाद का प्रशिक्षण मिलता है। प्रशिक्षण में सामने वाली जाति के प्रति इतनी घृणा भर दी जाती है कि फिर उसे मारने में कोई संकोच नहीं होता। घृणा हिंसा का बहुत बड़ा कारण है। उसे बदलना और उसके स्थान पर प्रेम उत्पन्न करना अत्यन्त आवश्यक है। प्रेम उत्पन्न होने पर कोई किसी को सता नहीं सकता। एक चोर या डाकू अपनी पत्नी के गहने नहीं चुराता, घरवालों को कभी नहीं लटता। मिलावट करने वाला व्यापारी बाजार में जाता है तो क्या वह अपने परिवार के लिए मिलावटी दूध या मिलावटी सामान लाना चाहता है? वह अपने घर में अच्छा लाना चाहेगा। अपनी पत्नी को व अपने बच्चों को खराब चीज खिलाना नहीं चाहेगा। वह दूसरों को मिलावटी माल बेचता है और स्वयं शुद्ध लेना चाहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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