Book Title: Jivan Vigyan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 67
________________ ५६ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प जाता है और शारीरिक विकास के लिए भी छुटपुट प्रयत्न चलते रहते हैं। ये दो प्रकार के विकास होते हैं, किन्तु मानसिक विकास और भावनात्मक विकास के लिए वहां बहुत कम संभावनाएं रहती हैं। इन दोनों का विकास होना आवश्यक है। इनके विकास का मूल उपाय है - संवेगों का परिष्कार । भय एक संवेग है। इसके कारण मनुष्य शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं को भोगता है । यदि भय और चिन्ता का संवेग टलता है, खतरे की बात कम होती है तो बहुत सारी बीमारियां भी टल जाती हैं, मनोकायिक (साइकोसोमेटिक) बीमारियों में परिवर्तन आ जाता है । प्रश्न है कि संवेगों का परिष्कार कैसे किया जाए? उसकी पद्धति क्या है? पहली बात है - सैद्धान्तिक अर्थात् मूल्यबोध | जीवन-विज्ञान की पद्धति में सोलह जीवन मूल्यों का निर्धारण किया गया है। विद्यार्थी के सामने कोई आदर्श होता है तो वह उसके अनुसार प्रेरणा लेता है । संकल्प, तितिक्षा, सहिष्णुता, साहस, अभय-ये मूल्य हैं, आदर्श हैं। इन मूल्यों के आधार पर विद्यार्थी संकल्पना करता है, चिन्तन करता है । इसलिए सबसे पहली बात है विद्यार्थी के समक्ष एक आदर्श उपस्थित करना, आदर्श की प्रतिमा को उपस्थित करना । उसके जीवन का किस प्रकार से निर्माण करना है उस प्रकार की प्रतिमा उसके सामने उपस्थित करना । यह सैद्धान्तिक पक्ष है । केवल सैद्धान्तिक पक्ष पर्याप्त नहीं है। उसके लिए प्रायोगिक विधि से गुजरना होगा। प्रायोगिक पक्ष के बिना बात अधूरी रह जाती है । आदमी भय को छोड़ना चाहता है। भय, क्रोध आदि किसी को अच्छे नहीं लगते । 'बच्चा भी क्रोध करता है, पर वह जानता है कि क्रोध का परिणाम बुरा होता है। एक बच्चा मेरे पास आकर बोला- 'मुझे गुस्सा बहुत आता है।' मैंने कहा- 'आता है तो आता है। इससे क्या फर्क पड़ता है?' वह बोला-' इससे झंझट बढ़ता है। माता- पिता को अच्छा नहीं लगता। लड़ाइयां होती हैं।' बच्चा भी इन सब बातों को समझता है। पर प्रश्न है कि क्रोध, भय आदि को कैसे मिटाएं? कैसे कम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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