Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 7
________________ [6] ही जन्म मरण है इस जन्म-मरण के चक्र में परिभ्रमण आत्मा का विभावदशापन करता है। यही संसार है। इस जन्म-मरण की परम्परा को तोड़ने के लिए ही भव्यात्माओं के सारे धार्मिक और. आध्यात्मिक प्रयास होते हैं। संसारी जीवों के विभिन्न भेद प्रभेद, विभिन्न अवस्थाएं, गति जाति, इन्द्रिय, काय, योग, उपयोग आदि की अपेक्षा से प्रस्तुत सूत्र में नौ प्रतिपत्तियों के माध्यम से स्वरूप बतलाया गया है। प्रथम प्रतिपत्ति - इस प्रतिपत्ति में संसारी जीवों के त्रस और स्थावर दो भेद कर उनका . कथन किया गया है। स्थावर के तीन भेद किए हैं, पृथ्वीकायिक, अपकायिक और वनस्पतिकायिक। त्रस के भी तीन भेद बतलाएं हैं - तेजस्कायिक, वायुकायिक और उदारत्रस। यद्यपि स्थावर के रूप में पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति पांच माने गए हैं। आचारांगादि सूत्रों में पांच ही स्थावर का कथन है। किन्तु यहाँ गति को लक्ष्य में रख कर तेजस और वायु को भी त्रस कहा गया है। क्योंकि अग्नि का ऊर्ध्व गमन और वायु का तिर्यक् गमन प्रसिद्ध है। दोनों कथनों का सामंजस्य स्थापित करते हुए त्रस जीव दो प्रकार के कहे गये हैं, गति त्रस और लब्धि त्रस। तेजस और वायु, केवल गति त्रस है, लब्धि त्रस नहीं जिसके त्रस नामकर्म रूपी लब्धि का उदय है, वे ही लब्धि त्रस है। यानी बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक। ___ इन पांच स्थावर काय की संचेतना जो तीर्थंकर भगवन्तों ने अपने विमल एवं निर्मल केवल ज्ञान में देखी, उसी के अनुसार उनका निरूपण किया। जैन दर्शन के अतिरिक्त अन्य किसी भी दर्शन में स्थावर काय में जीवों का निरूपण नहीं मिलता है। एक मात्र जैन दर्शन ही ऐसा दर्शन है जो स्थावर काय का निरूपण कर उन्हें सजीव बतलाता है तथा अपने सर्व विरति अहिंसक साधक (श्रमण) को इन स्थावर जीवों की भी वैसी ही रक्षा करने की आज्ञा प्रदान की है जैसी की अन्य चलते-फिरते जीवों की। प्रश्न हो सकता है कि पांच स्थावर काय जीवों के कान, नेत्र, नाक, जीभ, वाणी और मन तो होता नहीं तो फिर वे दुःख का अनुभव कैसे करते हैं ? इसका समाधान आगमकार उदाहरण देकर फरमाते हैं कि जैसे कोई व्यक्ति जो जन्म से अंधा, लूला, लगंड़ा, बहरा, अवयवहीन है, कोई व्यक्ति यदि शस्त्र से उसके अंगों का छेदन भेदन करे तो उसे वेदना होती है। किन्तु वह अवयवहीन होने से वेदना को व्यक्त नहीं कर सकता। इसी प्रकार एकेन्द्रिय पृथ्वीकायिक आदि जीवों के कान, नेत्र, जीभ, वाणी और मन न होते हुए भी उन को अव्यक्त वेदना होती है। ___ स्थावर और त्रस का स्वरूप बताकर आगे इस प्रतिपत्ति में चौबीस ही दण्डकों के जीवों के शरीर, अवगाहना, संहनन, संस्थान, कषाय, संज्ञा, लेश्या, इन्द्रियां, समुद्घात, संज्ञी, असंज्ञी, वेद, पर्याप्ति, अपर्याप्ति, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, योग, उपयोग, आहार, उत्पात, स्थिति, मरण, च्यवन गति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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