Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 294
________________ 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 295 श्रावक प्रतिक्रमण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रो. चाँदमल कविट प्रश्न सामायिक ग्रहण किए बिना अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाय तो क्या अनुचित होगा? मुख्यता तो अतिचारों के प्रतिक्रमण की है। उत्तर सामान्य नियम से तो सामायिक ग्रहण करके ही प्रतिक्रमण किया जाना चाहिए, किन्तु अपवाद स्थिति में ट्रेन आदि में यात्रा करते हुए संवर ग्रहण करके भी प्रतिक्रमण किया जा सकता है। सामायिक में सावद्य प्रवृत्ति का दो करण तीन योग से त्याग होता है, जबकि संवर से एक करण एक योग से भी सावद्य प्रवृत्ति का त्याग किया जा सकता है तथा उसमें ट्रेन आदि में चलने का आगार रखा जा सकता प्रश्न प्रतिक्रमण के पाठ प्राकृत भाषा में होने से कठिन हैं, समझ में नहीं आते। अतः उनका हिन्दी अनुवाद करके बोलने में क्या आपत्ति है? उत्तर प्राकृत भाषा का हिन्दी अनुवाद करने से अर्थ में एवं भाषा में भी धीरे-धीरे परिवर्तन हो जाना संभव है। इससे प्रतिक्रमण के मूल स्वरूप के बिगड़ जाने का भय है। अतः प्रतिक्रमण के पाठों को मूल में प्राकृत में बोलना ही आवश्यक और उचित होगा। प्रश्न प्रतिक्रमण को जीवादि नवतत्त्वों में से किस तत्त्व में लिया गया है और क्यों? उत्तर प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त नामक आभ्यन्तर तप का भेद होने से निर्जरा तत्त्व में लिया जा सकता है। आस्रव का निरोध होने से इसमें संवर भी रहता है। प्रश्न 'इच्छामि ठामि' प्रतिक्रमण का सार पाठ है। उसे ही बोलकर प्रतिक्रमण कर लें तो क्या अनुचित होगा? उत्तर 'इच्छामि ठामि' पाठ में श्रावक-व्रतों एवं अतिचारों का संक्षिप्त कथन किया गया है। इस पाठ में श्रावक-व्रतों का स्वरूप और खुलासेवार अतिचारों का कथन नहीं किया गया है। अतः विधिपूर्वक पूर्ण प्रतिक्रमण छः आवश्यक रूप करना आवश्यक है। सामायिकादि छः आवश्यक करने से ही आवश्यक की पूर्ण आराधना हो सकती है, केवल एक पाठ बोलने से नहीं। प्रश्न प्रतिदिन प्रतिक्रमण करने के बाद भी अतिचारों का पुनः पुनः सेवन किया जाता हो तो प्रतिक्रमण करने से क्या लाभ? इससे तो प्रतिक्रमण किया ही न जाय? उत्तर प्रतिक्रमण करने वाले को अतिचार लगाने का कहने पर लज्जानुभव होता है और वह सुधार का संकल्प करता है, पुनः पुनः अतिचार नहीं लगाता। परन्तु प्रतिक्रमण नहीं करने वाला तो निःसंकोच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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