Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 305
________________ 306 उत्तर 306 जिनवाणी ||15,17 नवम्बर 2006|| अगर मैं अपनी आत्मा का कुछ सुधार कर लूँ तो अच्छा है। ऐसा सोचकर वे जातिस्मरण से पहले लिए हुए अणुव्रत आदि का स्मरण करते हैं और फिर उनका पालन करते हैं। प्रश्न जलचर जीव पानी में रहकर सामायिक-प्रतिक्रमण किस प्रकार कर सकते हैं? उत्तर अपने मन में सामायिक आदि पालने का निश्चय कर ये जलचर जीव जब तक सामायिकादि व्रत का काल पूर्ण न हो जावे तब तक हलन-चलन नहीं करते, निश्चल रहते हैं और इस प्रकार उनके द्वारा यह व्रत पाला जाता है। प्रश्न प्रथम पद की वंदना में जघन्य बीस तथा उत्कृष्ट एक सौ साठ तथा एक सौ सत्तर तीर्थंकर जी की गणना किस प्रकार की गई है ? महाविदेह क्षेत्र कुल पाँच होते हैं। इनमें सदैव चौथे आरे जैसी स्थिति होती है एवं यहाँ तीर्थंकरों का सद्भाव भी शाश्वत कहा गया है। प्रत्येक महाविदेह क्षेत्र के मध्य में मेरुपर्वत है। इस कारण से पूर्व और पश्चिम के रूप में इनके दो विभाग हो जाते हैं। पूर्व महाविदेह के मध्य में सीता नदी और पश्चिम महाविदेह के मध्य में सीतोदा नदी के आ जाने से एक-एक के पुनः दो-दो विभाग हो जाते हैं। अतः प्रत्येक महाविदेह के चार विभाग हो गए। प्रत्येक विभाग में आठ-आठ विजय हैं। अतः एक महाविदेह में ८ x ४ = ३२ एवं पाँच महाविदेह में ३२ x ५ =१६० विजय होते हैं। प्रत्येक विभाग में जघन्य एक तीर्थंकर होते हैं, अतः जम्बूद्वीप के महाविदेह में ४, धातकीखण्ड एवं अर्द्धपुष्कर द्वीप के महाविदेह में ८-८ तीर्थंकर जघन्य होते ही हैं। इस प्रकार यह जघन्य २० का कथन हुआ। जब उत्कृष्ट तीर्थंकरों की संख्या हो तो प्रत्येक विजय में एक-एक यानी १६० एवं उसी समय यदि पाँच भरत एवं पाँच एरावत में भी एक-एक यानी कुल १० तो ये सब मिलाकर १७० तीर्थंकर उत्कृष्ट एक साथ हो सकते हैं। प्रश्न चौथे प्रतिक्रमण आवश्यक में कभी बाँया एवं कभी दाँया घुटना ऊँचा क्यों किया जाता है? उत्तर चौथे प्रतिक्रमण आवश्यक में व्रतों में लगे हुए अतिचारों की आलोचना एवं व्रत धारण की प्रतिज्ञा का स्मरण किया जाता है। व्रतों की आलोचना के लिए मन-वचन-काया से विनय अर्पणता आवश्यक है। बायाँ घुटना विनय का प्रतीक होने से व्रतों में लगे हुए अतिचारों की आलोचना के समय बाँया घुटना खड़ा करके बैठते हैं अथवा खड़े होते हैं। श्रावकसूत्र में व्रत-धारण रूप प्रतिज्ञा की जाती है। प्रतिज्ञा-संकल्प में वीरता की आवश्यकता है। दायाँ घुटना वीरता का प्रतीक होने से इस समय दायाँ घुटना खड़ा करके व्रतादि के पाठ बोले जाते हैं। प्रश्न चौरासी लाख जीवयोनि के पाठ में १८,२४,१२० प्रकारे 'मिच्छामि दुक्कडं' दिया जाता है। ये प्रकार किस तरह से बनते हैं? उत्तर जीव के ५६३ भेदों को अभिहया, वत्तिया आदि १० विराधना से गुणा करने पर ५६३० भेद बनते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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