Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 377
________________ 378 जिनवाणी [15,17 नवम्बर 20061 जिज्ञासा- तो क्या दो प्रतिक्रमण करना आगम विरुद्ध है? समाधान- पूर्वाचार्यों ने अनेक विवादास्पद स्थलों पर 'तत्त्वं तु केवलिनो विदन्ति' करके अपना बचाव किया है। हम भी किसी भी विवाद में उलझना नहीं चाहते। जिज्ञासा- पर आपका कोई ना कोई दृष्टिकोण तो होगा ही? समाधान- हाँ, वो तो रखना ही होगा। गुरु भगवन्तों की कृपा से, आगम वर्णन से- कैशी गौतम संवाद। __कालास्यवेषिक अणगार आदि पार्श्वनाथ भगवान् के अनेक साधु, भगवान् महावीर के शासन में आए, उन्होंने ५ महाव्रत के साथ प्रतिक्रमण वाले धर्म को स्वीकार किया, ऐसा आगम स्पष्ट कर रहा है। अर्थात् २४वें तीर्थंकर के शासन की व्यवस्था मध्यवर्ती तीर्थंकरों के शासन से स्पष्ट अलग है, अतः मध्यवर्ती का कथानक यहाँ वर्तमान में लागू नहीं किया जा सकता। शैलकजी को पंथकजी ने प्रतिदिन भी प्रमाद परिहरण के लिए प्रतिक्रमण कराया होगा, पर फिर भी वे सफल नहीं हो पाए। अतः चौमासी को उन्होंने विशेष प्रयास किया और उसमें सफलता मिल गई। इसी प्रकार विशेष दोष पर साधक अलग से आलोचन, प्रतिक्रमण आज भी करता है। पर सामान्य जीवन-चर्या में, साधना में एक प्रतिक्रमण की बात उचित प्रतीत होती है, अतः हम चौमासी व संवत्सरी को भी एक ही प्रतिक्रमण करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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