Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 380
________________ 381 ||15.17 नवम्बर 2006 जिनवाणी पाँचवें महाव्रत की ५ भावना ४५. इष्ट, अनिष्ट-शब्द पर राग-द्वेष नहीं करे। ४६. इष्ट, अनिष्ट-रूप पर राग-द्वेष नहीं करे। ४७. इष्ट, अनिष्ट-गंध पर राग-द्वेष नहीं करे । ४८. इष्ट, अनिष्ट रस पर राग-द्वेष नहीं करे। ४९. इष्ट, अनिष्ट स्पर्श पर राग-द्वेष नहीं करे। रात्रि-भोजन के दो अतिचार ५०. दिन का लिया रात्रि में खाना। ५१. रात्रि का लिया दिन में खाना। ईर्या समिति के चार अतिचार ५२. द्रव्य से- छः काया के जीवों को देखकर नहीं चले। ५३. क्षेत्र से- चार हाथ प्रमाण भूमि देखकर नहीं चले। ५४. काल से- दिन को देखकर रात्रि में पूँजकर नहीं चले। ५५. भाव से- उपयोग सहित नहीं चले। भाषा समिति के दो अतिचार ५६. सावध भाषा ५७. मिश्र भाषा एषणा समिति के ४७ अतिचार उद्गम के १६ दोष ५८. आधाकर्म- साधु का उद्देश्य रखकर भोजन बनाना। ५९. औद्देशिक- सामान्य याचकों को उद्देश्य रखकर बनाना। ६०. पूतिकर्म- शुद्ध आहार को आधाकर्मादि से मिश्रित करना। ६१. मिश्रजात- अपने और साधु के लिए एक साथ बनाना। ६२. स्थापन- साधु के लिए दुग्ध आदि अलग रख देना। ६३. प्राभृतिका- साधु को पास के ग्रामादि में आया जान कर विशिष्ट आहार बहराने के लिए जीमणवार आदि का दिन आगे-पीछे कर देना। ६४. प्रादुष्करण- अंधकारयुक्त स्थान में दीपक आदि का प्रकाश करके भोजन देना। ६५. क्रीत- साधु के लिए खरीद कर लाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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