Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 387
________________ 388 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी साधु के योग्य चौदह प्रकार का दान (अतिथिसंविभाग व्रत से सम्बद्ध) १. अशन- खाए जाने वाले पदार्थ, रोटी आदि। २. पान- पीने योग्य पदार्थ, जल आदि। . ३. खादिम- मिष्ठान्न, मेवा आदि सुस्वादु पदार्थ। ४. स्वादिम- मुख की स्वच्छता के लिए लौंग सुपारी आदि। ५. वस्त्र- पहनने योग्य वस्त्र। ६. पात्र- काष्ठ, मिट्टी और तुम्बे के बने हुए पात्र । ७. कम्बल- ऊन आदि का बना हुआ कम्बल। ८. पादप्रोञ्छन- रजोहरण, ओघा । ९. पीठ- बैठने योग्य चौकी आदि। १०. फलक- सोने योग्य पट्टा आदि। ११. शय्या- ठहरने के लिए मकान आदि। १२. संथारा- बिछाने के लिए घास आदि। १३. औषध- एक ही वस्तु से बनी हुई औषधि। १४. भेषज- अनेक चीजों के मिश्रण से बनी हुई औषधि। ___ऊपर जो चौदह प्रकार के पदार्थ बताए गए हैं, इनमें प्रथम के आठ पदार्थ तो दानदाता से एक बार लेने के बाद फिर वापस नहीं लौटाए जाते। शेष छह पदार्थ ऐसे हैं, जिन्हें साधु अपने काम में लाकर वापस लौटा भी देते हैं। कायोत्सर्ग के उन्नीस दोष घोडग' लया' य खंभे कुड्डे' माले' य सबरि बहु नियले। लंबुत्तर घण' उड्ढी संजय" खलिणे" य वायस" कविठे" ।। सीसोकंपिय" मूई' अंगुलि-भमूहा" य वारुणी" पेहा"। एए काउन्सग्गे हवंति दोसा इगुणवीसं ।। १. घोटक दोष- घोड़े की तरह एक पैर को मोड़कर खड़े होना। २. लता दोष- पवन-प्रकंपित लता की तरह काँपना। ३. स्तंभकुड्य दोष- खंभे या दीवाल का सहारा लेना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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