Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 318
________________ 319 |15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी उत्तर खमासमणो का आसन कोमलता व नम्रता का प्रतीक है तथा वन्दना का आसन शरणागति व विनय का प्रतीक है। प्रश्न इच्छामि खमासमणो दो बार क्यों बोला जाता है? उत्तर जिस प्रकार दूत राजा को नमस्कार कर कार्य निवेदन करता है और राजा से विदा होते समय फिर नमस्कार करता है, उसी प्रकार शिष्य कार्य को निवेदन करने के लिये अथवा अपराध की क्षमायाचना करने के लिए गुरु को प्रथम वंदना करता है, खमासमणो देता है और जब गुरु महाराज क्षमा प्रदान कर देते हैं, तब शिष्य वंदना करके दूसरा खमासमणो देकर वापस चला जाता है। बारह आवर्तन पूर्वक वन्दन की पूरी विधि दो बार इच्छामि खमासमणो बोलने से ही संभव है। अतः पूर्वाचार्यों ने दो बार इच्छामि खमासमणो बोलने की विधि बतलायी है। प्रश्न 'इच्छामि खमासमणो' के पाठ में आए 'आवस्सियाए पडिक्कमामि' दूसरे खमासमणो में क्यों नहीं बोलते हैं? उत्तर पहली बार खमासमणो के पाठ द्वारा खमासमणो देने के लिये गुरुदेव के अवग्रह (चारों ओर की साढ़े तीन हाथ की भूमि) में प्रवेश करने हेतु 'आवस्सियाए पडिक्कमामि' बोला जाता है। दूसरी बार आज्ञा लेने की आवश्यकता नहीं होने से 'आवस्सियाए पडिक्कमामि' शब्द नहीं बोला जाता। प्रश्न सिद्धों के १४ प्रकार कौन-कौनसे हैं? उत्तर स्त्रीलिंग सिद्ध, पुरुषलिंग सिद्ध, नपुंसकलिंग सिद्ध, स्वलिंग सिद्ध, अन्यलिंग सिद्ध, गृहस्थलिंग सिद्ध, जघन्य अवगाहना, मध्यम अवगाहना, उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध, समुद्र में तथा जलाशय में होने वाले सिद्ध । इनका कथन उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवें अध्ययन की गाथा ५०-५१ में है। प्रश्न करेमि भंते' पाठ को प्रतिक्रमण करते समय पुनः पुनः क्यों बोला जाता है? उत्तर समभाव की स्मृति बार-बार बनी रहे, प्रतिक्रमण करते समय कोई सावध प्रवृत्ति न हो, राग-द्वेषादि विषम भाव नहीं आए, इसके लिए प्रतिक्रमण में करेमि भंते का पाठ पहले, चौथे व पाँचवें आवश्यक में कुल तीन बार बोला जाता है। -रजिस्ट्रार, अ. भा. श्री जैन रत्न आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड, जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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