Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 361
________________ 3621 | जिनवाणी ||15,17 नवम्बर 2006|| सूर्यास्त से पूर्व प्रत्याख्यान हो जाते तो, प्रतिक्रमण की आज्ञा लेते समय तो ३६ मिनट दिन शेष रहने से गाँठिया लौटाया जा सकता था। ६. छेदसूत्रों में रात्रि भोजन के अतिचारों का प्रायश्चित्त आदि के अधिकारों में सूर्यास्त के पूर्व तक गोचरी-पानी करने का उल्लेख उपलब्ध है अर्थात् कोई यह कहे कि सूर्यास्त के पूर्व प्रतिक्रमण का विधान है तो यदि ऐसा होता तो छेदसूत्रों में रात्रि के भोजन के अतिचारों के प्रायश्चित्त का विधान कैसे बताया जाता? अर्थात् दिन छिपने का पता न लगे और आहार करते हैं, ऐसे में यह स्पष्ट है कि सूर्यास्त के पूर्व तक गोचरी की जा सकती है। वर्तमान समय में भी प्रतिलेखन के समय का परिवर्तन देखने को मिल रहा है, परन्तु प्रतिक्रमण के समय का अतिक्रमण शास्त्रीय मर्यादा का उल्लंघन माना जाता है और प्रायश्चित्त दिया-लिया जाता है ७. भावदेवसूरि कृत 'यति दिनचर्या' में भी 'जो पडिक्कमेइ सूरे अद्धनिबुड्डे जहा भणइ सुत्तं' इस गाथा से सूर्य के अर्द्ध अस्त होते ही प्रतिक्रमण का प्रारम्भ बताया है। उपर्युक्त विवेचना से दिन और रात्रि के दोनों प्रतिक्रमण रात्रि में ही करना प्रमाणित हो जाता है। प्रश्न आवश्यक सूत्र से तप के १२ भेदों में से किन-किन का आराधन होता है और कैसे? उत्तर आवश्यक सूत्र से तप के १२ भेदों में से निम्नलिखित तपों के प्रत्यक्ष आराधन होने की संभावना है १. कायक्लेश २. प्रतिसंलीनता ३. प्रायश्चित्त ४. विनय ५. स्वाध्याय ६. ध्यान ७. कायोत्सर्ग। . १. कायक्लेश- आवश्यक सूत्र करते हुए कायोत्सर्ग मुद्रा, उकडू आदि आसन हो जाते हैं, जो कि कायक्लेश तप के प्रकार हैं। २. प्रतिसंलीनता- विविक्त शयनासन का सेवन करना तथा अपनी इन्द्रियों का संगोपन करना प्रतिसंलीनता तप है। आवश्यक के आराधक मुनि के विविक्तशयनासन होता ही है तथा इन्द्रियों और मन का संगोपन होने पर भाव आवश्यक संभव है, जिससे प्रतिसंलीनता तप हो जाता है। ३. प्रायश्चित्त- आवश्यक सूत्र करने वाला साधक अपने द्वारा हुई भूलों का प्रायश्चित्त स्वीकार करके आत्मशुद्धि करता है, आराधक होता है। पाँचवें आवश्यक में साधक प्रायश्चित्त अंगीकार करता है, जिससे प्रायश्चित्त तप हो जाता है। ४. विनय- तीसरा वंदन आवश्यक है, जिसमें शिष्य गुरुदेव को खमासमणो के पाठ से उत्कृष्ट वन्दन करता है। गुरुदेव का विनय करता है। वैसे प्रत्येक आवश्यक के पहले भी विनय रूप वंदन का प्रावधान है। ५. स्वाध्याय- आवश्यकसूत्र ३२ आगमों में से एक आगम है। प्रतिक्रमण करते समय प्रतिक्रमणकर्ता का स्वाध्याय तो सहज हो ही जाता है। ६. ध्यान- पहले सामायिक आवश्यक में (कायोत्सर्ग करते हुए भी) मुनिराज १२५ अतिचारों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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