Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 367
________________ 368 जिनवाणी को छोड़, काया के व्यापार को, चेष्टा को रोक, काया से ऊपर उठना कायोत्सर्ग है। सो पुण काउस्सग्गो दव्वतो भावतो य भवति । दव्वतो कायचेट्ठानि रोहो, भावतो काउस्सग्गो झाणं ।। प्रायः कायोत्सर्ग में २ ही प्रकार के कार्य का विधान है |15, 17 नवम्बर 2006 १. निज स्खलना दर्शन / चिन्तन इच्छाकारेणं का कायोत्सर्ग एवं प्रतिक्रमण के पहले सामायिक आवश्यक में कायोत्सर्ग । २. गुणियों के गुणदर्शन / कीर्तन लोगस्स का कायोत्सर्ग ( सामायिक पालते व प्रतिक्रमण का पाँचवां आवश्यक) दशवैकालिक की द्वितीय चूलिका तो साधक को 'अभिक्खणं काउस्सग्गकारी' से कदम-कदम पर कायोत्सर्ग अर्थात् काया की ममता को छोड़ने की प्रेरणा कर रही है । संक्षेप में समाधान का प्रयास है, विस्तृत विवेचना व्याख्या सहित ग्रन्थों में उपलब्ध है। - आवश्यक चूर्णि, आचार्य जिनदासगणि जिज्ञासा - वर्तमान में प्रत्याख्यान आवश्यक के अंतर्गत मात्र आहारादि का प्रत्याख्यान किया जाता है। दसों प्रत्याख्यान आहारादि के त्याग से ही संबंधित है । मिथ्यात्व, प्रमाद, कषायादि के त्याग का प्रयोजन इस आवश्यक से कैसे हल हो सकता है? समाधान- जिज्ञासा में सबसे पहला शब्द है- 'वर्तमान' । यह केवल वर्तमान में ही नहीं, पूर्व से प्रचलित है। उत्तराध्ययन के २६वें अध्याय की गाथा ५१, ५२ में देखिए किं तवं पडिवज्जामि एवं तत्थ विचिंतए । कासगं तु पारित्ता वंदिऊण तओ गुरुं ॥ ५१ ॥ पारिय काउस्सग्गो, वंदित्ताण तओ गुरुं । तवं पडिवज्जेत्ता करिज्जा सिद्धाण संथवं ॥ ५२ ॥ स्पष्ट है पाँचवें आवश्यक में चिन्तन करके छठे आवश्यक में तप स्वीकार करें। रात्रिकालीन प्रतिक्रमण के पाँचवें आवश्यक में अपना सामर्थ्य तोले- क्या मैं ६ मास तप अंगीकार कर सकता हूँ? यदि नहीं, तो क्या ५ मास... ? यावत् उपर्वास, आयंबिल .... नहीं तो कम से कम नवकारसी उपरांत तो स्वीकार करूँ । देवसिक में चिन्तन बिना, छठे आवश्यक में गुणधारण किया जाता है। यह भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशक २ में वर्णित सर्वउत्तर गुण प्रत्याख्यान रूप होता हैं। Jain Education International सर्व मूलगुण (५ महाव्रत ), देश मूलगुण ( ५ अणुव्रत) व देश उत्तर गुण ( ३ गुणव्रत, ४ शिक्षाव्रत) चारित्र अथवा चारित्राचारित्र में आते हैं, जबकि देश मूल गुण तप में। उत्तराध्ययन की गाथा 'तप' का ही For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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