Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्यन्त १६ संस्कारलाक मानते हैं, क्युकि अनादि सान्त है, और अभव्याश्रित संसारी सकर्माजीवोंके साथ कर्मका संबन्ध अनादि अनन्त है, और जीवकर्मका संबन्ध अनादि है स्वर्णमृत्तिकाका दृष्टान्त मानते हैं और रागद्वेषादिक अठारे दूषणोंकरके रहित, सर्व देवगणके पूजनीक, सर्व जीवोंके ऊपर दया भाव धारण करनेवाले, परमपुरुष परमात्म गुण पायके जो सिद्धिस्थानकमें निश्चल रहे हैं, कभी संसारमें जिसका आवागमन नहिं रहा है, ऐसा ईश्वरको जैनधर्मवाले ईश्वर मानते हैं, परंतु जगतका रचनेवाला, तथा संहार करनेवाला, रागद्वेषादिकसे अनेक कुकर्म करनेवाला होय, ऐसे ईश्वरकों जैनीलोक ईश्वर तुल्य न मानते हैं, और गृहस्थ धर्मका जन्मसें मरणपर्यन्त १६ संस्कार रूप गृहस्थधर्मका संपूर्ण आचार तथा साधुधर्मका संपूर्ण आचार जैनलोक मानते हैं, क्युकि जैनधर्ममें मोक्षप्राप्ति ज्ञानक्रिया दोनुंसें होती है, और कोई क्रियाको उत्थापके केवल ज्ञानकोंहि मानतें हैं, कोई ज्ञानकों उत्थापके केवल क्रियाकोहि मानते हैं, ऐसे जो एकान्तिक हैं, उन सबकों जैनीलोक मिथ्यात्वी कहेतें हैं, इत्यादिसंपूर्ण जैनधर्मका स्वरूप तथा ईश्वरका स्वरूप तथा जैनकुलाचारका स्वरूप तो बडेबडे जैन सिद्धान्तोंमें हेतु युक्ति प्रमाण दृष्टान्तोंके विस्तारसें लिखे हुवे हैं, जिसमें बहुत तो जैनाचार जैनजोतिष जैननीतिके ग्रन्थ, कितनेक वर्षांसें अन्यमति म्लेच्छादिक केई राजावोंके अनीतिके सबबसें विच्छेद तुल्य होगए हैं, तथापि आवश्यकसूत्र, आचारदिनकरादि अनेक आचारग्रन्थ प्रसिद्ध है, जिसमें जो विद्वज्जन पुरुष हैं, सो तो संपूर्ण जैन आचारकों जान सक्ते हैं, परन्तु व्याकरणादि बोधरहित सामान्य वर्गवाले सर्व बालजीवोंको उस ग्रन्थोंसें अपना संपूर्ण आचारका जाणपणा नहिं हो सक्ता है, और जैनऐतिहासिक आवश्यकपीठिका महापुरुषचरित्र त्रिषष्टिशलाका केवल ज्ञानकोहि For Private And Personal Use Only

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