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गुण अनंत प्रभु ताहरा, किमहि कह्या न जाय. राम प्रभु जिन-ध्यानथी, चिदानंद सुख थाय. पंच तीर्थ चैत्यवंदन
आज देव अरिहंत नमुं, समरुं तारुं नाम; ज्यां ज्यां प्रतिमा जिनतणी, त्यां त्यां करूं प्रणाम. शत्रुंजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार; तारंगे श्री अजितनाथ, आबु रिखव जुहार. अष्टापद गिरि उपरे, जिन चोवीसे जोय; मणिमय मूरति मानशुं, भरते भरावी सोय.. समेत-शिखर तीरथ वडुं, जिहां वीशे जिन पाय; वैभार गिरि उपरे, श्री वीर जिनेश्वर राय .. मांडवगढनो राजियो, नामे देव सुपास; ऋषभ कहे जिन समरतां, पहोंचे मननी आश चौवीस जिन वर्ण चैत्यवंदन
पद्मप्रभु ने वासुपूज्य, दोय राता कहीए. चन्द्रप्रभु ने सुविधिनाथ, दोय उज्ज्वल लहीए. मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दो नीला निरख्या. मुनिसुव्रत ने नेमनाथ, दो अंजन सरिखा.
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