Book Title: Jinandji Bhav Jal Par Utar
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 270
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मेरी चाहत की दुनिया बसे ना बसे मेरे दिलमें बसेरा तेरा चाहिये... आशरा इस जहाँ का ओ वीर तारुं शासन... (रागः आवो बच्चों तुमे दीखाए ...) ओ वीर! तारुं शासन मुजने ... प्राण थकी पण प्यारुं तारा शासन काजे मरी फीटवानी हिंमत धारु जैनं जयति शासनम्...(२) वैशाख सुद अगियारस दिवसे शासन स्थपायुं तें तो भव तरवा काजे ए नावडुं... तरतुं मूक्युं तें तो जन्म्या अमे जिनशासन मांही... गौरव एनुं धारुं . ओ वीर ! तारुं शासन. चोर लूंटारुं डाकु तर्या... तारा आ शासनथी आशा छे निश्चय अमे तरीशुं भीम भयंकर भवथी लोही तणां आ बुंदे बुंदे... शासन प्रेम वधारुं. तुज शासननी रक्षा काजे... कुरबानी छे मारी अंगे अंगे व्यापी गई छे... जिनशासन खुमारी प्राण अमारो ऋण अमारुं ... हे वीर ! शासन तारुं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० For Private And Personal Use Only ओ वीर ! ओ वीर!

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