Book Title: Jinandji Bhav Jal Par Utar
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विद्या भण्यो हुं वाद माटे केटली कथनी कहुं? साधु थईने ब्हारथी, दांभिक अंदरथी रहुं. में मुखने मेलुं कर्यु दोषो पराया गाईने, ने नेत्रने निंदित कर्या, परनारीमां लपटाईने, वळी चित्तने दोषित कर्यु चिंती नठारूं परतणुं, हे नाथ! मारूं शुं थशे! चालाक थई चूक्यो घj. ....... १० करे काळ जाणे कतल पीडा कामनी बीहामणी, ने विषयमां बनी अंध हुं विडंबना पाम्यो घणी, तो पण प्रकाश्युं आज लावी लाज आप तणी कने, जाणो सहु तेथी कहुं कर माफ! मारा वांकने. ..........११ नवकार मंत्र विनाश कीधो अन्य मंत्रो जाणीने, कुशास्त्रना वाक्यो वडे हणी आगमोनी वाणीने, कुदेवनी संगत थकी कर्मो नकामा आचर्या, मतिभ्रम थकी रत्न गुमावी काच कटका में ग्रह्या. ......... १२ आवेल दृष्टि मार्गमां मुकी महावीर! आपने, में मूढधीए हृदयमां ध्याया मदनना चापने, नेत्रबाणोने पयोधर नाभिने सुंदर कटी, शणगार सुंदरीओ तणा छटकेल थई जोया अति. ......... १३
२७७
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 285 286 287 288 289 290 291 292