Book Title: Jinandji Bhav Jal Par Utar
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 288
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृगनयनी सम नारी तणा मुखचंद्र निरखवा वती, मुज मन विषे जे रंग लाग्यो अल्प पण-गाढो अति, ते श्रुतरूप समुद्रमां धोया छतां जातो नथी, तेनुं कहो! कारण तमे बचु केम हुं आ पापथी? ............ १४ सुंदर नथी आ शरीर के समुदाय गुणतणो नथी, प्रभुता नथी तो पण प्रभु! अभिमानथी अक्कड फरूं, चोपाट चार गति तणी संसारमा खेल्या करूं. ............१५ आयुष्य घटतुं जाय तो पण पाप बुद्धि नव घटे, आशा जीवननी जाय तो पण विष्याभिलाषा नव मटे, औषध विषे करूं यत्न पण हुं धर्मने तो नवि गणुं, बनी मोहमां मस्तान हुं पाया विनाना घर चj. .............१६ आत्मा नथी! परभव नथी! वळी पुम्य पाप कशुं नथी!, मिथ्यात्वीनी कटुवाणी में धरी कान पीधी स्वादथी, रवि सम हता ज्ञाने करी प्रभु! आपश्री तो पण अरे! दीवो लई कूवे पड्यो धिक्कार छे मुजने खरे. ..........१७ में चित्तथी नहीं देवनी के पात्रनी पूजा चही, ने श्रावकोके साधुओनो धर्म पण पाळ्यो नहीं, २७८ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 286 287 288 289 290 291 292