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रत्नाकर पच्चीसी मंदिर छो मुक्ति तणा मांगल्य क्रीडाना प्रभु, ने इन्द्र न ने देवता सेवा करे तारी विभु! सर्वज्ञ छो स्वामी वी सिरदार अतिशय सर्वना, घj जीव तुं! घणुं जीव तुं! भंडार ज्ञानकातणा ........१ त्रण जगतना आधार ने अवतार हे करूणातणा, वी वैद्य! हे! दुर्वार आ संसारना दुःखो तणा, वीतराग! वल्लभ विश्वना! तुज पास अरजी उच्चरूं, जाणो छतां! पण कही अने आ हृदय हुं खाली करूं ........२ शुं बाको माबाप पासे बाळक्रीडा नव करे? ने मुखमांथी जेम आवे तेम शुं नव उच्चरे? तेमज तमारी पास तारक आज भोळा-भावथी, जेवू बन्युं तेवू कहुं! तेमां कशुं खोटुं नथी. में दान तो दीधुं नहिं ने शीयळ पण पाळ्युं नहि, तपथी दमी काया नहिं शुभ भाव पण भाव्यो नहिं, ए चार भेदे धर्ममांथी कांई पण प्रभु! नव कर्यु, म्हारूं भ्रमण भव सागरे निष्फळ गयुं! निष्फळ गयु ........४
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