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श्री पंचासर पार्श्वनाथ स्तवन
पार्श्व पंचासरा जगत् मां जयकरा, पूर्ण आनंद दरियो सुहायो; शुद्ध आत्मप्रभु वीतरागी विभु,
पूर्ण ज्योतिस्वरूपे में ध्यायो. रोग नहि, शोक नहि, सर्व चिंता रहित,
सर्व भीति रहित आत्म वरवा; शुद्ध क्षायिक तुज रूप संभारतां, तत्क्षण मोह नहीं शोक परवा. जेवुं छे ताहरुं रूप आविः भलुं, माहरुं तेहवुं रूप नक्की; माहरी ताहरी एकता अनुभवी, जीवतां मुक्तिनी झांखी वकी. भार शो? दुःखनो, ज्ञान आगळ टके, भानु त्यां 'तम' रहे केम क्यारे; तुज देखे थतो आत्मउपयोग मुज, पूर्ण आनंद वहेतो जत्यारे . माहरो ताहरो भेद ज्यां छे नहीं, एक आनंदरूपे प्रकाश्यो;
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पार्श्व० १
पार्श्व० २
पार्श्व० ३
. पार्श्व० ४