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विमलगिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामजी; कांकरे कांकरे अनंता सीध्या, एकसो ने आठ गिरिनामजी.
नवपद स्तुति वीर जिनेश्वर अति अलवेसर, गौतम गुणना दरीयाजी; एक दिन आणा वीरनी लइने, राजगृही संचरीआजी. श्रेणिक राजा वंदन आव्या, उलट मनमां आणीजी; पर्षदा आगल चार विराजे, हवे सुणो भवि प्राणीजी. ........१ मानव भव तुमे पुण्ये पाम्या, श्री सिद्धचक्र आराधोजी; अरिहंत सिद्ध सूरि उवज्झाया, साधु देखी गुण वाधोजी. दरशन नाण चारित्र तप कीजे, नवपद ध्यान धरीजेजी; धुर आसोथी करवां आयंबिल, सुख संपदा पामीजेजी.......२ श्रेणिक राय गौतम ने पूछे, स्वामी ए तप केणे कीधोजी?; नव आयंबिल तप विधिशुं करतां,
वांछित सुख केणे लीधोजी?. मधुर ध्वनि बोल्या श्री गौतम, सांभलो श्रेणिक राय वयणाजी; रोग गयो ने संपदा पाम्या, श्री श्रीपाल ने मयणाजी.........३ रुमझुम करती पाये नेउर, दीसे देवी रूपालीजी; नाम चक्केसरीने सिद्धाई, आदि वीर जिन वर रखवालीजी.
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