Book Title: Jinabhashita 2008 08 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 8
________________ परिणमन कराने की शक्ति असत्य के पास बहुत | जीव है, वह सच्चे देव-शास्त्र-गुरु पर श्रद्धा रखता है, है। सत्य के पैरों को भी वह हिला देता है, क्योंकि | लेकिन फिर भी उसके अन्दर कहाँ पर कमी रहती है? सत्य कथंचित आदि है और असत्य अनन्तकाल से चला | तो आचार्य कहते हैं कि भाव-भासन का अभाव है। आ रहा है। सत्य की सुरक्षा आज अनिवार्य है। | भोगों की चपेट से वह अपने को छुड़ा नहीं पा रहा सत्य की सुरक्षा वहीं पर हो सकती है, जहाँ पर | है। ज्ञान का समार्जन करनेवाला व्यक्ति, यह सोचता है पक्षपात नहीं है, जहाँ शुद्ध आचार-विचार हैं, और यदि | कि मेरे भीतर भोग की लिप्सा कितनी मात्रा में घटी यह सब नहीं है, तो वहाँ सत्य धीरे-धीरे फिसलता हुआ | है। चाहे वह स्वाध्याय करनेवाला हो या पूजन करनेवाला, असत्य के रूप में बदलता जाता है। आज मुझे सत्य | अन्दर ही अन्दर वे घड़ियाँ चलती रहती हैं। जिस प्रकार की बात कहना है असत्य की नहीं, असत्य से तो आप | ब्लड-प्रेशर नापते समय काँटा यूँ-यूँ करता है, उसी प्रकार सभी लोग परिचित हैं। मन की प्रणाली बार-बार विषयों की ओर जाती है। सुदपरिचिदाणुभूदा, सव्वस्सवि कामभोगबंधकहा।। सत्य क्या है? असत्य क्या है? वह सोचता रहता है। एयत्तस्सुवलम्भो, णवरि ण सुलहो विहत्तस्स॥ एक दोस्त था। उसके घर के लोग तन्त्र-मन्त्र को स.सा.गा. ४ | बहुत मान्यता देते थे। और वह मात्र देव-शास्त्र-गुरु को आचार्य कुन्दकुन्ददेव समयसार में कहते हैं कि | मानता था। एक दिन वह कहता है कि मुझे एक ताबीज इस आत्मा ने भोग, काम, बन्ध की कथायें खब सनी | लेना है। मैंने कहा कि कहाँ से लाओगे? सुनार के यहाँ हैं, यदि नहीं सुनी है तो, एकत्व की कथा नहीं सुनी। से लायेंगे। मैंने कहा कि चलो हम भी देखते हैं विषयों का इसे खूब अनुभव है। विषयभोग के बारे में | ताबीज बनती है। तब, वह सुनार के पास जाकर कोई भी बालक नहीं है, सभी अनन्तकाल के आसामी | है कि फलाने व्यक्ति ने इस प्रकार की ताबीज लाने हैं. और अनंत का कोई ओर-छोर नहीं होता। आत्मा | के लिये कहा था। जो कछ भी पैसा लेना है ले लो का क्या इतिहास है? पहले ही हमने बताया था. कि लेकिन ताबीज अच्छी बनाना है। ताबीज बनाते समय आज मुझे सत्य की बात कहनी है। सत्य क्या है? सत्य | ताँबे के ऊपर हथौड़े की सही चोट पड़ना चाहिए झूठी अमर है। सत्य, अनादि काल से चला आ रहा है। आज | नहीं पड़ना चाहिए। झूठ का मतलब मैं समझता रहा, तक हमने सत्य का मूल्यांकन नहीं किया, आज तक | देखता रहा। झूठ कौन सी होती है, जो कोई भी आभरण हमने सत्य का संवेदन नहीं किया, मात्र असत्य का | बनते हैं, उन पर हथौड़े की चोट करके यूँ-यूँ करते संवेदन-मनन-चिन्तन किया है, स्वप्न में भी सत्य का | हैं। उसको बोलते हैं झूठा प्रहार, उसका कोई मतलब संवेदन नहीं किया। जिसने सत्य का संवेदन किया, उसे | नहीं होता। इसका अर्थ होता है कि ताबीज झूठा प्रहार मार्ग मिला, मंजिल मिली और अनंतकाल के लिए वह | सहन नहीं कर सकता। बाँधनेवाला झूठ बोले यह बात अनंत, अव्याबाध सुख का भोक्ता बन गया। सत्य की | अलग है, लेकिन ताबीज कहता है कि मेरा निर्माण बिना महिमा कहने योग्य नहीं है। उसे हम शब्दों में नहीं | झूठ के हुआ है। हमने सोचा क्या मामला है? तो मामला बाँध सकते। वह लिखने की वस्तु नहीं है, लखने की | यह है कि सुनार की सावधानी वहाँ पर होगी। वस्तु है। 'लिखनहारे तो बहुत हैं, लेकिन लखनहारा आज तो 'धर्मयुग' है। हाँ बात तो बिल्कुल ठीक तो विरला ही पाओगे।' वस्तुतत्त्व का निरीक्षण करनेवाला | है भैय्या! आज तो धर्मयुग पत्रिका निकल रही है, और हृदय आज कहाँ है? इसलिए आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने 'युगधर्म' भी निकलता है। कभी धर्म आगे बढ़ जाता लेखनी उठाते ही कह दिया 'सुदपरिचिदाणुभूदा' सभी है, तो कभी युग आगे बढ़ जाता है। तो हम धर्मयुग कार्य संसारी प्राणी ने अनंतों बार किये हैं। की बात करें। आज युग इतने आगे बढ़ गया है, और पूर्व वक्ता ने अभी-अभी कहा था कि जिनवाणी | धर्म इतने पीछे रह गया है कि क्या बताऊँ? इसलिए को अपने जीवन में उतारना है। 'धम्मं भोगणिमित्तं।' | तो धर्मयुग कहा गया। धर्म की बातें करने से धर्म नहीं यह गाथा जब, मैं आगे जाकर उसी समयसार में देखता | आ सकता, धर्म तो तब आयेगा जब युग धर्ममय बन हूँ, तो एक विचित्र सत्य के दर्शन होते हैं। एक मिथ्यादृष्टि | जाये। पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं 6 अग्रस्त 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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