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अजै.तव्यम् (अजैर्यष्टव्यम्) का अर्थ क्या पशुबलि ही है ?
आलोक मोदी जैनदर्शनाचार्य
जब हम जैन कथा ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं, किया था इसलिए तुम्हारे पिता मेरे-धर्म भाई हैं। उस तब हमें एक कथा मिलती है, जिसमें पशु बलि की | महाकाल ने क्षीर कदम्ब के पुत्र पर्वत के इष्ट अर्थ परम्परा कबसे चली है। यह कथा हमें पद्मपुराण, | का अनुसरण करनेवाली अथर्ववेद- सम्बन्धी साठ हजार हरिवंशपुराण, उत्तरपुराण ग्रन्थों में उलब्ध होती है।। ऋचाएँ पृथक्-पृथक् स्वयं बनाई। ये ऋचाएँ वेद का रहस्य उत्तरपुराण के सड़सठवें पर्व में हमें यह कथा बड़े सुन्दर | बनानेवाली थीं, उसने पवर्त को इनका अध्ययन कराया ढंग से वर्णित मिलती है।
और कहा कि पूर्वोक्त मन्त्रों से वायु को द्वारा बढ़ी हुई इस कथा के अनुसार धवल देश में स्वस्तिकारती | अग्नि की ज्वाला में शान्ति, पुष्टि और अभिचारात्मक नगर में एक क्षीरकदम्ब नामका पूज्य ब्राह्मण रहता था। क्रियाएँ की जावें, तो पशुओं की हिंसा से इष्ट फलकी वह समस्त शास्त्रों का विद्वान् था और प्रसिद्ध श्रेष्ठ | प्राप्ति हो जाती है। महाकाल असुर ने अपने क्रूर असुरों अध्यापक था। उसके पास उसका लड़का पर्वत, दूसरे | को बुलाया और आदेश दिया कि तुम लोग राजा सगर देश से आया हुआ नारद और राजा विश्वावसु का पुत्र | के देश में तीव्र ज्वर आदि के द्वारा पीड़ा उत्पन्न करो। वसु ये तीन छात्र एक साथ पढ़ते थे। इन तीनों में पर्वत | असुर स्वयं पर्वत को साथ लेकर राजा सगर के नगर निर्बुद्धि था, वह मोह के उदय से सदा विपरीत अर्थ | में गया। वहाँ मन्त्र मिश्रित आशीर्वाद के द्वारा सगर के ग्रहण करता था। बाकी दो छात्र पदार्थ का स्वरूप जैसा | दर्शन कर पर्वत ने अपना प्रभाव दिखलाते हए कहा गुरु बताते थे, वैसा ही ग्रहण करते थे। एक दिन | कि तुम्हारे राज्य में जो घोर अमंगल हो रहा है, मैं उसे क्षीरकदम्बक ने उत्तम संयम धारण कर लिया और अन्त | मन्त्रसहित यज्ञ के द्वारा शीघ्र ही शान्त कर दूंगा। विधाता में संन्यासमरण कर उत्तम स्वर्ग लोक में जन्म प्राप्त किया। ने पशुओं की सृष्टि यज्ञ के लिए ही की है, अतः पर्वत ने पिता का स्थान प्राप्त किया और शास्त्रों का | उनकी हिंसा से पाप नहीं होता, किन्तु स्वर्ग के विशाल व्याख्यान किया।
सुख प्रदान करनेवाला पुण्य ही होता है। राजा सगर ने किसी एक दिन साधुओं की सभा में 'अजै.तव्यम्' | यज्ञका प्रबंध किया और इधर पर्वत ने यज्ञ आरम्भ कर इस वाक्य का अर्थ निरूपण करने में बड़ा भारी विवाद प्राणियों को मन्त्रित करना शुरू किया। मन्त्रोच्चारणपूर्वक चल पड़ा। नारद कहते थे कि जिसमें अङ्कर उत्पन्न | उन्हें यज्ञ कुण्ड में डालना शुरु किया। उधर महाकाल करने की शक्ति नष्ट हो गई है, ऐसा तीन वर्ष का | ने उन प्राणियों को विमानों में बैठाकर शरीरसहित आकाश पुराना जो अज कहलाता है और उससे बनी हुई वस्तुओं | में जाते हुए दिखलाया और लोगों को विश्वास दिला द्वारा अग्नि के मुख में देवता की पूजा करना यज्ञ कहलाता | दिया कि ये सब पशु स्वर्ग गये हैं। उसी समय उसने है। नारद का यह व्याख्यान यद्यपि गुरु पद्धति के अनुसार | देश के सब अमङ्गल और उपसर्ग दूर कर दिये। यह था, परन्तु निर्बुद्धि पर्वत कहता था कि अज शब्द एक | देख बहुत से भोले प्राणी उसकी प्रतारणा-माया से मोहित विशेष का वाचक है अतः उससे बनी हुई वस्तुओं के | हो गये और स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा से यज्ञ में मरने द्वारा अग्नि में होम करना यज्ञ कहलाता है। यह सनुकर | की इच्छा करने लगे। यज्ञ के समाप्त होने पर उस दुष्ट उत्तम प्रकृतिवाले साधु पुरुषों ने पर्वत का तिरस्कार किया।| पर्वत ने विधि-पूर्वक एक उत्तम जाति का घोड़ा तथा
जब पर्वत अपमानित होकर वन में चला गया, | राजा की आज्ञा से उसकी सुलसा नामकी रानी को भी तब वहाँ महाकाल नाम का अंसुर ब्राह्मण का वेष रखकर | होम दिया। भ्रमण कर रहा था। उस असुर ने पर्वत से कहा कि इस प्रकार हिंसा के ताण्डव नृत्य के बारे में जब हे पर्वत! तुम्हारे पिता ने, स्थण्डिल ने विष्णु ने, उपमन्यु | नारद और तपस्वियो ने सुना, तो वे सब इस हिंसक ने और मैंने भौम नामक उपाध्याय के पास शास्त्राभ्यास | कार्य की निंदा करने लगे। इस विषय को लेकर पर्वत
अगस्त 2008 जिनभाषित 17
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