Book Title: Jinabhashita 2008 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 26
________________ विद्याष्टकम् (शिखरिणीवृत्तम्) डॉ० भागचन्द्रो जैनो 'भागेन्दुः' ___ अनुवाद- जो अहिंसा ओर सत्य की उपासना सुविद्यावारीशो गणधरसमो ज्ञानचतुरः ।। | में अहर्निश निरत हैं, तथा विकारों के शमनकर्ता और विधाता शिष्याणां शुभगुणवतां शास्त्रकुशलः। इन्द्रिय-विजेता हैं, निरन्तर ज्ञान के मार्ग पर संचरणशील पुराणानां ज्ञाता नयपथचरो नीतिनिपुणः हैं। जिनके (गृहस्थ अवस्था के पिता एवं माता होने का स कुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवरः॥ गौरव) क्रमशः श्री मलप्पा जी (समाधिस्थ मुनि श्री अनुवाद- आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी मुनि | मल्लिसागर जी महाराज) एवं (श्रीमती) श्रीमती जी महाराज श्रेष्ठ विद्याओं के समुद्र हैं, गणधर के समान | (समाधिस्थ आर्यिका समयमती जी माताजी) को प्राप्त ज्ञान-विज्ञान की विविध शाखाओं में दक्ष हैं, अच्छे गुणकारी | है, जो विशेषज्ञ मनीषी हैं, विख्यात हैं, बृहस्पति के समान शिष्य' समुदाय के विधाता हैं, समस्त शास्त्रों में कुशल | ज्ञानवान् है, दिगम्बर मुद्राधारी है, ससार-जन्म, वृद्धावस्था हैं, प्राच्य विद्याओं के मनीषी हैं, जैन-दर्शन के महत्त्वपूर्ण | और मृत्यु के भय को दूर करनेवाले ऐसे परमश्रेष्ठ गुरुवर सिद्धान्त 'अनेकान्तवाद' के अनयायी हैं और नीति-निपण | आचार्य विद्यासागर जी मुनि महाराज हमारा कल्याण करें। हैं, संसार, जन्म, वृद्धावस्था और मृत्यु के भय को दूर करनेवाले ऐसे परम श्रेष्ठ गुरुवर आचार्यप्रवर विद्यासागर "सदालग्गा'-ग्रामे यो जनिमवाप्नोच्छारदि-तिथौ जी मुनिराज हमारा कल्याण करें। 'धरो विद्यायाः' यो प्रथितयशसोऽभूदनुपमः। ततो लब्ध्वा ज्ञानम् 'उपनय' -विधानस्य विधिना 2 मुमुक्षुब्रह्मज्ञः सरलहृदयः शान्तकरणः स कुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवरः॥ स्वशिष्याणां शास्ता शुभगुणधरः सिद्धगणकः। अनुवाद- शरद पूर्णिमा के शुभ दिन सदलगा ग्राम सुयोगी धर्मज्ञः सरलसरलः कर्मकुशलः (कर्नाटक) में जिनका जन्म हुआ, और जो (बाल्यावस्था स कुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवरः॥ | में) विद्याघर के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुए, जिन्होंने - अनवाद- जो परम श्रेष्ठ पद मोक्ष के अभिलाषी | विद्या-आरम्भ के प्रसिद्ध 'उपनयन संस्कार की निर्धारित हैं, आत्म-तत्त्व के मर्मज्ञ हैं, जिनका हृदय अत्यन्त सरल | प्रविधि से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की, संसार-जन्म, वृद्धाहै, जो परम संयमी (जिनकी इन्द्रियाँ शान्त) हैं, अपने | वस्था और मृत्यु के भय को दूर करनेवाले ऐसे परमश्रेष्ठ शिष्यों (संघ) के जो अनुशासक, नियंत्रक, प्राचार्य हैं, गुरुवर आचार्य विद्यासागर जी मुनि महाराज हमारा कल्याण प्रशस्त गुणों के धारक हैं, उत्कृष्ट साधक तपस्वियों में | करें। अग्रगण्य हैं, मन-वचन-काय पर समान रूप से नियंत्रक, 5 सुयोगी हैं, धर्म के मर्मज्ञ है, अतिशय सरल हैं, आचार्यपद इतो लब्ध्वाऽऽचार्य ऋषिवर-वरं 'देश'-भणितम् के दायित्वों के सम्पादन में अत्यधिक कुशल हैं, संसार व्रतं ब्रह्माख्यं योऽलभत परमं ह्यात्म-रसिकः। जन्म, वृद्धावस्था, और मृत्यु के भय को दूर करनेवाले ततोऽनुज्ञां प्राप्य गतवानसौ 'ज्ञानजलधिं' ऐसे परम श्रेष्ठ गुरुवर आचार्य विद्यासागर जी मुनि महाराज स कुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवरः ।। हमारा कल्याण करें। अनुवाद- आत्म-रसिक विद्याधर जी ने आचार्य रत्न देशभूषण महाराज से ब्रह्मचर्यव्रत धारण किया और अहिंसासत्यार्थी शमदमपरो ज्ञानपथिकः उत्कट ज्ञान-पिपासा के कारण आचार्य-रत्न देश भूषण मलप्पा-श्रीमत्योरजनि जनुषा गौरवकरः। महाराज की अनुमतिपूर्वक जो आचार्य ज्ञानसागर महाराज प्रविद्यो विख्यातः सुरगुरुसमः वीत-वसनः के पास पहुँचकर प्रकृष्ट ज्ञान प्राप्त किया। संसार जन्म, स कुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवरः॥ । वृद्धावस्था और मृत्यु के भय को दूर करनेवाले ऐसे 3 24 अग्रस्त 2008 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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