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शिक्षाव्रत, सल्लेखना एवं ग्यारह प्रतिमाओं का सांगोपांग। मुझे विश्वास हे कि शोधकर्ता के इस अध्यावसाय विवेचन किया गया है। शोधार्थी ने सर्वत्र अभिव्यक्ति से समाज एवं राष्ट्र को अपनी साहित्यिक, सांस्कृतिक को प्राथम्य देकर ग्रन्थ को सर्वोपयोगी बनाने में कोई | एवं चारित्रिक गरिमा का बोध हो सकेगा तथा श्रद्धेय कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य जी के चिन्तन को षष्ठ अध्याय में चिन्तमणि त्रय का वैशिष्ठ्य प्रदेय भारतीय काव्य परम्परा में अग्रगण्य स्थान प्राप्त होगा। एवं मूल्यांकन कर कृतियों की उपादेयता पर कलशारोहण मैं अन्त में डॉ. श्री अनिलकुमार जी को साधुवाद कर दिया है।
देता हूँ कि जिन्होंने मोक्षमार्ग में कल्याणकारी रत्नत्रय इस शोध प्रबन्ध का आद्योपान्त अनुशीलनकर यह | पर प्रणीत ग्रन्थों पर शोधकार्य कर उन्हें सरल शब्दों पाया कि इसमें अधुनातन शोध-प्रविधि एवं समीक्षा- में परिभाषित कर सर्वकल्याणकारी बना दिया है। निश्चत सिद्धान्तों के मानकों को आधार बनाया गया है, तथा ही डॉ. श्री भागचन्द्र जी 'भागेन्दु' के कुशल निर्देशन विषय के समीचीन प्रतिपादन एवं समीक्षात्मक अध्ययन- | ने इस शोध प्रबन्ध में चार चाँद लगा दिये हैं। मैं उन्हें अनुशीलन हेतु अधिकाधिक साहित्यिक, ऐतिहासिक, | भी हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। सांस्कृतिक दार्शनिक, धार्मिक तथा खोजपूर्ण ग्रन्थों का शोध प्रबन्ध के अन्त में पारिभाषिक शब्दकोष भरपूर उपयोग किया गया है। डॉ. पं. पन्नालाल जी | देकर कृति को समझने एवं जैन सिद्धान्तों के द्वार तक आधुनिक संस्कृत के कवियों, साहित्यकारों तथा टीकाकारों | पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करना प्रशंसनीय है। में महत्त्वपूर्ण एवं शीर्षस्थान रखते हैं, यह तथ्य शोध |
से. नि. प्राचार्य, नेहा चौक, गली नं. 4, प्रबन्ध से सुस्पष्ट हो जाता है।
गंजबासौदा (विदिशा) म.प्र.
क्या भूलें क्या याद रखें ?
मीनाक्षी जैन छोटे भाई की कन्या का विवाह था। बड़े भाई वर्षों पहले छोटे भाई द्वारा कहे गए कुछ अपमानजनक शब्दों को लेकर उस विवाह में शामिल नहीं हो रहे थे। छोटा भाई अनुनय विनय करते हुए हार गया। क्या करें, क्या न करें की स्थिति आ गई। ऐसे में किसी मित्र ने सुझाया कि बड़े भाई जैनसंत के पास नित्य सत्संग को जाया करते थे, उनसे मिलें। संत ने छोटे भाई के पश्चात्ताप व क्षमायाचना की पूर्ण बात सुनी। दूसरे दिन उन्होंने बड़े को छोटे की कन्या के विवाह में शामिल होने की बात कही।
बड़े भाई ने तुरंत छोटे भाई के पूर्वाचरण की बात बताते हुए मना कर दिया। इस पर संत ने पूछा- 'बताओ गत रविवार को मैंने क्या उपदेश दिया था?'
'याद नहीं आ रहा, महाराज।' 'प्रयास करो।' बहुत प्रयास करने पर भी उनको ठीक से याद नहीं आया।
इस पर संत ने कहा- 'जब गत रविवार के वचन तुम्हें याद नहीं, तो वर्षों पूर्व कहे कटुवचन तुम्हारे हृदय को कैसे वेध रहे हैं? अच्छी बातें याद नहीं रख सकते, तो बुरी को तो बिसार दो।'
संत की बात सुनकर बड़े भाई को अपनी भूल का अहसास हुआ। उन्होंने विवाह का प्रबंध अपने जिम्मे लिया। आइए हम भी कटु वचनों को भूल जाने की दुआ करें और सुखद यादों को याद करें।
मधुरिमा, 'दैनिक भास्कर' 2 जुलाई 2008, से साभार
30 अग्रस्त 2008 जिनभाषित
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