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श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटनागंज ( रहली), सागर म.प्र.
बुन्देलखण्ड (मध्यप्रदेश) के सागर जिलान्तर्गत | अतिशयों से युक्त इस प्राचीन क्षेत्र पर विराजित भगवान् रहली तहसील मुख्यालय में 1000 वर्ष से भी अधिक | पार्श्वनाथ जी की एक हजार आठ सर्पफणों से युक्त प्राचीन 'श्री दिगम्बर जैन अतिशयकारी तीर्थक्षेत्र पटनागंज' | संसार की सबसे विशाल सहस्रफणी प्रतिमाएँ सैकड़ों में विशाल क्षेत्र स्थित है। स्वर्णभद्र नदी के सुरम्य तट | सालों से, क्षेत्र को सुशोभित कर रही हैं। इन प्रतिमाओं पर एक ही परकोटे में अतिप्राचीन और अतिशयकारी | के फणों की अद्भुत कलात्मक संरचना को देखकर 30 गगनचुम्बी जिनालयों की लम्बी श्रृंखला है। इतने | दर्शनार्थी मुक्तहृदय से सराहना किये बिना नहीं रहते। प्राचीन इस क्षेत्र और क्षेत्र पर विराजमान प्रतिमाओं का बड़े बाबा : भगवान् महावीर स्वामी- अतिशय क्षेत्र अतिशय आज भी विद्यमान है।
पटनागंज के बड़े बाबा के रूप में विख्यात भगवान् महावीर मुगल शासक औरंगजेब के समय किये गये बर्बर | स्वामी की पद्मासन मुद्रा में, भारत की सबसे विशाल अत्याचार के बाद भी सुरक्षित रहे। मधुमक्खियों के हमलों अतिशयकारी अतिप्राचीन प्रतिमा विराजमान है। से मुगलसेना परास्त हुई थी।
खास बात यह है कि प्रतिष्ठित स्थल पर ही महान् संत न्यायाचार्य परम श्रद्धेय क्षुल्लक श्री गणेश | विशाल चट्टान में आसन सहित विशालकाय प्रतिमा प्रसाद जी वर्णी सन् 1944 में जब रहली क्षेत्र पधारे, | उत्र्कीण होने पर, जब इसे अन्यत्र ले जाना संभव नहीं तो अतिशय क्षेत्र पटनागंज के हालात पर हतप्रभ रह | | हो सका, तो इसी स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण गये। उन्होंने पटनागंज के जीर्णोद्धार का ऐसा दृढ़ निश्चय | किया गया, जो कि सदियों से अपनी अतिशययुक्त किया कि उन्होंने अन्न जल का पूर्णतः त्याग कर दिया | विशेषताओं के कारण आस्था का केन्द्रबिन्दु है। और तीसरे दिवस जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ हुआ। । भारत की सबसे विशाल भगवान् महावीर स्वामी
इस तरह अपने समय में चरमोत्कर्ष और उत्कृष्ट | जी की 13 फुट उत्तुंग पद्मासन प्राचीन प्रतिमा के दर्शन भगवान् महावीर स्वामी की विशाल प्रतिमा और सहस्रफणी | कर धर्मावलम्बी श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूर्ण कर, पार्श्वनाथ जी की अनूठी प्रतिमा जी सहित संपूर्ण क्षेत्र | सदियों से अपने जीवन को धन्य करते आ रहे हैं। का अतिशयपूर्ण दर्शन एक बार फिर वर्णी जी के निमित्त भगवान् मुनिसुव्रतनाथ जी- एक ही परकोटे में एक से सुरम्य और सुलभ बन सका।
साथ 30 भव्य जिन मंदिरों में प्रतिष्ठित, अतिशयकारी क्षेत्र के प्रमुख आकर्षण
प्रतिमाओं के समूह में एक और अद्वितीय प्रतिमा सहस्रकूट चैत्यालय- बेमिसाल और अनूठी रचनाओं | उल्लेखनीय है। में दुनिया का सबसे बड़ा सहस्रकूट चैत्यालय भी कलाकृति __ भगवान् मुनिसुव्रतनाथ जी की अत्यंत मनोज्ञ का अद्भुत नमूना है। इस 9 फुट ऊँचे अति प्राचीन पद्मासन प्रतिमा, जो कि कत्थई वर्ण में है, अपने आप सहस्रकूट चैत्यालय में 32 फुट की गोलाई में खड्गासन | में अनूठी प्रतिमा है। और पद्मासन मुद्रा में उत्कीर्ण एक हजार आठ अरहंत इसी मंदिर में 3/2 फुट उत्तुंग मूंगावर्ण की भगवान् प्रतिमाओं के एक साथ दर्शन भी दर्शनार्थियों को क्षेत्र | शांतिनाथ जी की अलौकिक, मनोहारी, प्राचीन प्रतिमा पर बार-बार आने को प्रेरित करते हैं।
विराजित है। साथ ही भगवान् आदिनाथ जी की दसवीं त्रिमूर्ति जिनालय- असि, मसि, कृषि, शिल्प, कला | शताब्दी की दो प्रतिमाएँ इसी मंदिर में एवं एक प्रतिमा और वाणिज्य के प्रणेता प्रथम तीर्थंकर भगवान् आदिनाथ | अन्य वेदी पर विराजमान है। जी, कीचड़ में कमल की तरह संसार में रहते हुये भी, नंदीश्वरद्वीप, पंचमेरु एवं समवशण- महान् जैन निर्लिप्त साधक भगवान् भरत जी, एक हजार वर्षों तक | संस्कृति के गौरवशाली अतीत के साक्षी अतिप्राचीन अविचल तपस्या कर प्रथम तीर्थंकर से भी पहले मोक्ष | नंदीश्वर द्वीप, पंचमेरु जिनालय के साथ ही समवशरण पधारे, भगवान् बाहुबली जी की अतिमनोज्ञ प्रतिमाएँ त्रिमूर्ति | की रचना भी भारत की पुरातन कला से परिचित कराती जिनालय में विराजमान हैं। सहस्रफणी पार्श्वनाथ जी- चंदनवृष्टि आदि अनेक 'क्षेत्र द्वारा प्रकाशित परिचय' से साभार
- अगस्त 2008 जिनभाषित 31
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