Book Title: Jinabhashita 2008 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 10
________________ यदि एक पहिया निकाल दिया जाये, तो रथ नहीं चल । मूल्यांकन घटता जा रहा है। सकता। एक वक्ता ने अभी कहा कि आज बड़ी-बड़ी । अक्षर के पास ज्ञान नहीं है, पर अर्थ को व्यक्त | संस्थायें हैं। संस्थाओं से शास्त्र भी प्रकाशित हुए हैं, लेकिन करने की योग्यता उसके पास है। योग्यता का अधिकरण | उनको कोई पढ़नेवाला नहीं है। ऐसा कार्य करनेवालों उसकी विवक्षा करनेवाले वक्ता के ऊपर निर्धारित है। का क्या कर्तव्य है? जरा इस पर भी ध्यान दें। देखें! सो आज उन लोगों के पास वह भी नहीं है। आज | सुबह से लेकर मध्याह्न तक रसोई मन लगाकर बनाई साहित्य क्या है? वस्तुतः जो वाच्यभूत पदार्थ है, उसको जाती है। भीतर से यह मन कहता है कि मैं किसी हम शब्दों में व्यक्त करते हैं। शब्द वस्तुतः ज्ञान नहीं | भूखे-प्यासे की क्षुधा दूर करूँ। मेरी रसोई का मूल्यांकन है, शब्द कोई वस्तु नहीं है, किन्तु वस्तु के लिए मात्र पूर्ण रूप से हो और वह सार्थक हो जाये। जिस किसी संकेत है। भाषा (लेंग्वेज) यह नॉलेज नहीं है, मात्र | व्यक्ति को आप श्रुत देकर अपने आपको कृत-कृत्य साइनबोर्ड है। नॉलेज का अर्थ है, जानने की शक्ति और | नहीं मानो। जिस प्रकार जिसको भूख है, उसी को आप लेंग्वेज को जानने के लिए भी नॉलेज चाहिए। यदि वह खाना खिलाते हैं, उसी प्रकार जिसके लिए अध्ययन विषयों में, कषायों में घुला हुआ है, तो ध्यान रखना | की रुचि है, उसे ही आप श्रुत-दान दीजिए, यदि आप उसका कोई मूल्य नहीं है। सही दाता हैं, श्रुत का सही-सही प्रचार-प्रसार करना ___आज कई विदेशी आ जाते हैं दिगम्बरत्व के दर्शन | चाहते हैं, तो बहुत सारे छात्र मेरे पास आ जाते हैं, बहुत करते हैं, श्रावकों को देखते हैं, तो ताज्जुब करते हैं कि | सारे व्यक्ति मेरे पास आ जाते हैं, और कहते हैं कि इस प्रकार धर्म रह सकता है। गाँधी जी, जब यहाँ से | महाराज मुझे कुछ दिशाबोध दीजिए, जो व्यक्ति खरीद विदेश गये थे, वहाँ पर उनके स्वागत के लिए बहुत | करके दिशाबोध देता है, उसका सामनेवाला सही-सही। भीड़ एकत्रित थी। यह कैसी खोपड़ी है? यह कैसी | मूल्यांकन नहीं करता। जिनवाणी की विनय ही हमारा - विचारधारा है? जिसके माध्यम से हमारा साम्राज्य पलट | परम धर्म है। यदि सम्यग्दर्शन के आठ अंग हैं, तो गया। उस व्यक्ति को हम देखना चाहते हैं, जब वो | सम्यग्ज्ञान के भी आठ अंग है, लेकिन सम्यग्ज्ञान के निकल गये थे, तो लोग इधर-उधर देखने लगे। कहाँ | आठ अंगों से बहुत कम लोग परिचित हैं। जिनवाणी हैं गाँधी जी? किसी ने कहा गाँधी जी यही हैं भैय्या! | का दान जिस किसी व्यक्ति को नहीं दिया जाता। जिनवाणी तो वह कहने लगे कि अरे! ये तो साधु जैसे हैं, तब | सुनने का पात्र वही है, जिसने मद्य-मांस-मधु और गाँधी जी ने कहा कि ये तो साधु की पृष्ठभूमि है, | सप्तव्यसनों का त्याग कर दिया है। मद्य-मांस-मधु का साधु तो बहुत पहुँचे हुए लोग होते हैं। तब लोगों ने | सेवन आज समाज में बहुत हो रहा है। केवल स्वाध्याय कहा कि जब आपका इतना प्रभाव है, तो उनका कितना | करने मात्र से ही सम्यग्दर्शन नहीं होनेवाला। बाह्याचरण होगा? गाँधी जी बोले-वे अपना प्रभाव दिखाते नहीं हैं, का भी अन्तरंग परिणामों पर प्रभाव पड़ता है। विषय क्योंकि वे दुनिया से ऊपर उठे हए हैं। वासनाओं में लिप्त यह आपकी प्रवृत्ति अन्दर के सम्यग्दर्शन __आचार्य उमास्वामी ने कहा है कि चोरी से, झूठ | को भी धक्का लगा सकती है। दुश्चरित्र के माध्यम से काम लेना यह असत्य है। सत्य बोलना सत्य नहीं | से सम्यग्दर्शन का टिकना भी मुश्किल हो जायेगा। है। असत्य का विमोचन करना सत्य है। अभी पूर्व वक्ता | आजकल प्रत्येक क्षेत्र में प्रवृत्तियाँ बदलती जा रही हैं। ने आपके सामने कहा कि महाराज तो विमोचन करने | पहले जैनग्रन्थों पर मूल्य नहीं डाले जाते थे, क्योंकि में माहिर हो चुके हैं। (पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य | जिनवाणी का कोई मूल्य नहीं होता, वह अमूल्य है, द्वारा लिखित सज्ज्ञानचन्द्रिका का विमोचन करते समय)। लेकिन आज ग्रन्थों पर मूल्य डाले जा रहे हैं, जो कि हाँ... परिग्रह का तो मैं विमोचन करता हूँ, पर श्रुत का | ठीक नहीं है। मोक्ष-सुख दिलानेवाली जिनवाणी माँ को विमोचन नहीं करता। श्रुत का विमोचन तब तक नहीं | आप व्यवसाय का साधन मत बनाईये। सभा में बैठे होगा, जब तक मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी। श्रुत का विमोचन | हुए विद्वानों को यह कथन रुचिकर नहीं लग रहा होगा, यह लौकिक पद्धति है, लेकिन आज स्वाध्याय का | लेकिन यह एक कटु सत्य है, चाहे कड़वा हो या मीठा, 8 अग्रस्त 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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