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यह वस्तुस्थिति के विपरीत श्रद्धान है। इसी से । हैं कि (सिद्धान्त में भी) हम चोर नहीं हैं, क्योंकि यह कहते हैं कि हमारी आत्मा लुटती जा रही है, सत्ता का | सब कर्म की देन है। आत्मा तो साहूकार है, ज्ञायक विनाश होता चला जा रहा है, क्योंकि वहाँ पर सत्य | है, शुद्ध पिण्ड, उसमें किसी प्रकार से पर का सद्भाव का अभाव है। जो सत्य का अनुपालन करेगा वह स्तेय | नहीं है और उसका पर में सद्भाव नहीं है, यह त्रैकालिक कर्म को नहीं अपनायेगा और जो स्तेय कर्म को अपनायेगा, | सत्य है। इस एक सूत्र को लेकर बैठ गये और अंधाधुंध वह सत्य का अनुपालन नहीं करेगा। यद्यपि इस वृतान्त | चोरी भी करते हैं और बोलते हैं कि जो कुछ होता में लौकिकता आ सकती है, किन्तु उस लौकिकता के | है, वह कर्म की देन है, आत्मा बिल्कुल अस्पृष्ट है, माध्यम से उसे सिद्धान्त की ओर भी ग्रहण कर सकते | असंपृक्त है, आत्मा अपने से अन्य है, पर से अन्य हैं।
है, पर का अपने में अपने का पर में किसी भी प्रकार __एक व्यक्ति रोगी था, रोग शरीर के अन्य किसी | से समावेश नहीं है। प्रत्येक के क्षेत्र भिन्न, प्रत्येक के अंग में नहीं था, बल्कि मस्तिष्क में था। उसे बहुत | काल भिन्न, प्रत्येक के द्रव्य भिन्न, प्रत्येक के स्वभाव नींद से पीड़ा थी। इलाज के लिये उसने बहुत सारा | | भिन्न, सब भिन्न-भिन्न हैं, इस प्रकार माननेवाले हैं। पैसा चोरी करके, अन्याय करके, एकत्रित किया और | क्या यह भाव सच्चाईयुक्त है? यह एक प्रकार से कायरता अस्पताल में भरती हो गया। जब उसके मस्तिष्क का | है। एक प्रकार से पुरुषार्थ-विमुख होना है।
ऑपरेशन ठीक-ठीक हो चुका, डॉक्टर ने अच्छा ऑपरेशन | ये डॉक्टर व रोगी दोनों अपने से भिन्न हैं, 'पर' किया, शल्य चिकित्सा अच्छी हई। इतना सब होने के में उनका जीवन चल रहा है। इस प्रकार का जीवन उपरान्त उसका एक मित्र आया और पूछा कि- क्यों | तो तिर्यंचों में भी होता है। गाय, भैंस, कुत्ते, भी अपना भैया! ठीक हो! उसने उत्तर दिया- हाँ, पहले से बहुत | जीवन व्यतीत करते रहते हैं। मात्र जीवन को चलाना अच्छा हूँ, बहुत आराम है। कुछ दिन पश्चात् डॉक्टर | नहीं है, जीवन अपने आप अनाहत चल रहा है। जीवन कहता है कि एक गलती हो गयी, हमने ऑपरेशन तो को उन्नति की ओर बढ़ाने को ही मानवजीवन की सफलता कर दिया, पर मस्तिष्क को अपने स्थान पर नहीं रखा, | कहते हैं। साफल्य के अभाव में इस जीव को दुःख वह बाहर ही मेज पर रह गया। रोगी कहता है कि | का अनुभव करना पड़ रहा है, फिर भी इसकी खुराक कोई बात नहीं है, चिन्ता मत करो, क्योंकि में राजकीय | कुछ अलग है, उन्नति की खुराक कुछ अलग हुआ नौकरी करता हूँ। वहाँ बिना मस्तिष्क के भी काम चल | करती है। उन्नति के लिये कुछ प्रयास करना चाहिए। जायेगा।' इस दृष्टान्त को सुनकर मैंने सोचा कि इसमें | वह सत्य और 'अचोर्य' उन्नति की खुराक है जीवन कोई सन्देह नहीं है कि हम सत्य को पा सकते हैं, | की खुराक नहीं है। जीवन तो असत्य के साथ भी चल पर चोरी क्या है ये भी हमको पता नहीं है, फिर भी | सकता है, जीवन चोरी के साथ भी चल सकता है, हम दावा कर देते हैं कि हम चोर नहीं हैं। वे दोनों किन्तु वह जीवन, जीवन नहीं कहलायेगा, वह भटकन (डॉक्टर व मरीज) ही चोर हैं क्योंकि वह डॉक्टर भी | है। आप लोगों का भी यह जीवन, जीवन नहीं भटकन राजकीय सेवा में है, वह भी अपना कार्य सुचारु रूप है क्योंकि सत्य के साथ, अचौर्य के साथ आपका संयोग से नहीं करता। उसको जो एम.बी.बी.एस. की उपाधि | नहीं है। तो फिर क्या करें हम? करने के लिये मैं क्या मिली है, वह कभी भी समाप्त होनेवाली नहीं है। इसलिये | कहूँ? आपको यदि उन्नति चाहिये, विकास चाहिये, उत्थान व आजीवन डॉक्टर है, यह सिद्ध हो ही गया और रोगी | चाहिये अपनी आत्मा का, तो आपको वीतरागता की भी राजकीय सेवा में है, वह भी सोचता है कि मुझे | अनुभूति करनी होगी, चाहे आज करो या कल, वीतरागता किसी प्रकार भी राजसत्ता निकाल तो सकती नहीं है, | की अनुभूति किये बिना आप सर्वज्ञत्व को प्राप्त नहीं अब तो मैं पेंशन लेकर ही निकलूँगा। इसलिये दोनों | कर सकते और सर्वज्ञत्व के बिना अनन्त सुख का अनुभव को कार्य करने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसी | नहीं कर सकते, संसार का अभाव नहीं हो सकता। परिस्थति में हम साहूकार हैं, सत्य हैं, कैसे कहते हैं? इस अनादिकालीन पीड़ा को मिटाना है। पीड़ा यह तो लौकिक बात है। इसी प्रकार हम समझ लेते | यह नहीं है कि भूख लग गई है, पीड़ा यह नहीं है ।
8 जून-जुलाई 2008 जिनभाषित Jain Education International
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