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आचार्य समंतभद्रकृत स्वयंभूस्तोत्र में भी पार्श्वनाथ । परम्परा से भी ऐसा कथन चला आ रहा हो। इन्हीं का की स्तुति में 'धरण' का तो उल्लेख है, पर पद्मावती अनुसरण बाद के कुछ ग्रंथकारों ने भी किया है। द्राविड़का नहीं है।
संघ के साधुओं की गणना मठपति-साधुओं में की जाती __और तो क्या श्वेतांबराचार्य हेमचन्द्रकृत त्रिषष्टि | है। ये साधु जागीरें रखते हैं। संघभेद होने से द्राविड़संघ शलाका पुरुष चरित के पार्श्वनाथचरित्र में भी नाग- | और मूलसंघ की मान्यताओं में भी कहीं-कहीं फर्क रहता नागिनी का मरकर धरणेन्द्र और उसकी देवी होना तो | है। यही कारण है, जो द्राविड़संघी वादिराजकृत पार्श्वनाथलिखा है, पर देवी का नाम पद्मावती वहाँ भी नहीं | चरित्र का कथन मूलसंघी गुणभद्रकृत उत्तरपुराण से कहींलिखा है।
कहीं मिलता नहीं है। श्री पार्श्वनाथ पर उपसर्ग करनेवाले इन सब बातों से हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचे है | कमठ के जीव का नाम वादिराज ने भूतानन्द नाम का कि जब श्री पार्श्वनाथ स्वामी के धरण नाम के यक्ष | असुरजाति का देव लिखा है, जब कि उत्तरपुराण में को धरणेन्द्र करार दे दिया, तो उन्हीं भगवान् की यक्षिणी | संवर नामक ज्योतिषीदेव लिखा है। भूतानन्द यह नाम पद्मावती को भी धरणेन्द्र की देवी पद्मावती बना दिया | भी त्रिलोकसारादि ग्रंथों में असुरों में न लिखकर नागकुमारों है। ऐसा करते हुए यह भी नहीं सोचा कि क्या प्रत्येक | में लिखा है। तीर्थंकर की यक्ष-यक्षी का आपस में दाम्पत्यसम्बन्ध है? इस सारे ऊहापोह से यह प्रकट होता है कि श्री इसलिये न तो धारण यक्ष धरणेन्द्र है और न पद्मावती | पार्श्वनाथ स्वामी के जो यक्ष-यक्षिणी धरण और पद्मावती यक्षिणी ही धरणेन्द्र की देवी पद्मावती है। के नाम से कहे जाते हैं, वे नाग-नागिनी के जीव धरणेन्द्र
ऐसा मालूम पड़ता है कि धरणेन्द्र पद्मावती की | और उसकी देवी से बिल्कुल भिन्न हैं। यानी यह धरणेन्द्र यह कल्पना मूलसंघ से भिन्न द्राविड़ादि संघ-वालों ने | और उसकी देवी जो कि नाग-नागिनी के जीव थे, पार्श्वनाथ की है। मल्लिषेण (भैरव-पद्मावती-कल्प के कर्ता),| भगवान् की शासनदेव-देवी नहीं हैं। और जहाँ इनको वादिराज (पार्श्वनाथचरित के कर्ता) जो कि द्राविड़संघी | पार्श्वनाथ की शासन देव-देवी लिखा है, वह अजीब थे, उन्होंने ऐसा कथन किया है। सम्भव है उनकी गुरु- | मेल किया है, वह कथन मूलसंघ का नहीं है।
'जैन निबन्ध रत्नावली' से साभार
जैन संगठन की याचिका पर केंद्र को नोटिस | श्री वर्णी दि. जैन गुरुकुल जबलपुर का
सर्वश्रेष्ठ परीक्षाफल नई दिल्ली। विश्व जैन संगठन द्वारा जैनधर्म को
म.प्र. बोर्ड परीक्षा मण्डल भोपाल से मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक धर्म घोषित कराने के लिए दायर याचिका
श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार, चार केंद्रीय
एवं छात्रावास कक्षा १०वीं एवं १२वीं वर्ष २००७-०८ मंत्रालय और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को नोटिस जारी
का परीक्षा-परिणाम शतप्रतिशत रहा। किए हैं। संगठन के अध्यक्ष श्री संजय जैन ने कहा कि
कक्षा १०वीं में छात्र पियूष जैन ने ९०प्रतिशत एवं याचिका में हमने केवल धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक
छात्र रौशन जैन ने ८८ प्रतिशत अंक प्राप्त किये। घोषित करने की माँग की है, ताकि हम जैन तीर्थों पर इसी तरह कक्षा १२वीं में गणित विषय से छात्र हो रहे अतिक्रमण को रोक सकें, शिक्षण संस्थान के संचालन | वैभव जैन ने ७९ प्रतिशत अंक एवं प्रदीप जैन व देवेन्द्र में स्वायत्तता प्राप्त कर सकें व हजारों वर्षों से प्रचलित | जैन ने ७७ प्रतिशत अंक प्राप्त किये। इसी प्रकार कामर्स जैनधर्म की स्वतंत्र पहचान बनाए रख सकें। उन्होंने केंद्र संकाय से छात्र प्रशांत जैन ने ८१ प्रतिशत व गौरव जैन सरकार पर जैनधर्म का अस्तित्व मिटाने का आरोप लगाते
ने ८० प्रतिशत अंक प्राप्त कर संस्था का नाम स्वर्ण अक्षरों हुए कहा कि जैन धर्म के प्राचीन व स्वतंत्र धर्म होने
में लिख दिया।
बा.ब्र. जिनेश भैया जी ने बच्चों की उज्ज्वल भविष्य के अनेक अकाट्य प्रमाण उपलब्ध हैं। इन प्रमाणों को कई राज्य सरकारों और न्यायालयों ने भी स्वीकार किया
की कामना के साथ कहा कि हमारा उद्देश्य समाज के
पिछड़े हुए एवं आर्थिक स्थिति से कमजोर छात्रों को उच्च है।
शिक्षा प्रदान करना है। 'नवदुनिया' भोपाल, २४२ ००८ से साभार
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