________________
'पुनात्यात्मानं पूयतेऽनेनेति वा पुण्यं- जो आत्मा । आश्रय लेना चाहिए- 'जहाँ शुद्धोपयोग होता जानै तहाँ को पवित्र करता है, या जिसके द्वारा आत्मा पवित्र होता है, वह पुण्य है।'
तो शुभकार्य का निषेध ही किया, अर जहाँ अशुभोपयोग होता जाने, तहाँ शुभ को उपायकरि अंगीकार करना युक्त है।'
१५. आचार्य विद्यानंद जो श्लोकवार्तिक व अष्टसहस्री में लिखते हैं
उपर्युक्त प्रमाणों से यह सिद्ध है, कि पुण्य सर्वथा मोक्षस्यापि परमपुण्यातिशयचारित्रविशेषात्मक हेय नहीं है, अपितु कथंचित् हेय तथा कथंचित् उपादेय पौरुषाभ्याम् एव संभावत्। (पृ. २५७) । है । हम गृहस्थों को तो इस काल में शुद्धोपयोग होता अर्थ- परमपुण्य के अतिशय से तथा चारित्र रूपी नहीं, अतः शुभोपयोग अर्थात् पुण्य को ही उपादेय मानकर पुरुषार्थ से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अंगीकार करना चाहिए। इतना अवश्य है कि पुण्य साक्षात् मोक्ष का कारण नहीं है। साक्षात् मोक्ष का कारण तो शुद्धोपयोग ही है।
उपर्युक्त सभी प्रभावों को ध्यान में रखते हुये पुण्य को सर्वथा हेय कहना छोड़कर, पंडित टोडरमलजी के मोक्षमार्ग प्रकाशक अधिकार ७ में कहे इन वचनों का
शास्त्रि-परिषद् का शिविर एवं अधिवेशन सम्पन्न
अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रिपरिषद् के तत्त्वावधान में सराकोद्धारक राष्ट्रसंत परमपूज्य उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज, पूज्य मुनि संयमसागर जी एवं क्षु. सहज सागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में दिगम्बर जैनचौबीसी बड़ा मंदिर चंदेरी के विशाल सभाकक्ष में एक सप्त दिवसीय जैन विद्या शिक्षण एवं प्रशिक्षण शिविर, जिनवाणी की भव्य शोभायात्रा एवं परिषद् का अधिवेशन दिनांक 18 जून से 25 जून 08 तक अतिभव्यरूप में संपन्न हुआ। शिविर में पूरे देश से समागत सौ (100) विद्वानों ने तत्त्वार्थसूत्र, सिद्धांत, जैनन्याय, व्याकारणशास्त्र, विधिविज्ञान, दशधर्मप्रवचन आदि विषयों पर शास्त्रानुकूल प्रामाणिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षक विद्वानों में डॉ. श्रेयांसकुमार जैन बडौत, डॉ. कमलेश जी वाराणसी, डॉ. अशोक कुमार जी वाराणसी, प्रा. अरुणकुमार जैन ब्यावर, प्रा. निहालचन्द जी बीना, ब्र. जयकुमार निशांत टीकमगढ़, प. विनोदकुमार जैन रजवाँस ने अपने विद्वत्तापूर्ण व्याख्यानों के माध्यम से विविधविद्याओं में आगम विप्रतिपत्तियों का समाधान प्रस्तुत करते हुये नवोदित विद्वानों के ज्ञान का संवर्द्धन एवं अभिनमन किया। स्थानीय समाज के लाभार्थ छहढाला, बालबोध भाग १, २ की कक्षायें चलायी गयीं।
१/२०५, प्रोफेसर्स कॉलोनी,
आगरा (उ.प्र.)
शिविर - समापन के अवसर पर दिनांक 24 जून को पालकी में जिनवाणी को विराजमान कर एक भव्य विराट् शोभायात्रा चंदेरी नगरी की वीथियों से प्रवर्तित की गई। शोभायात्रा में पीतवस्त्रधारिणी नारियाँ हाथ में कलश, सौ से अधिक विद्वान् अपने सिर पर शास्त्रजी विराजमानकर चले रहे थे ।
दिनांक 25 जून को शास्त्रि-परिषद् का अधिवेशन डॉ. श्रेयांसकुमार जी की अध्यक्षता में आयोजित हुआ, जिसमें विद्वानों द्वारा जिनवाणी की महिमा, स्वाध्याय का महात्म्य एवं समाज और संस्कृति के उन्नयन में विद्वानों की भूमिका पर प्रकाश डाला। अधिवेशन में अल्पसंख्यक घोषित राज्यों के अन्तर्गत जैन संस्थाओं में जैनप्रतिभाओं को ही नियुक्ति में प्राथमिकता प्रदान करने तथा भारत सरकार द्वारा जैनसमुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने, 'सरिता' पत्रिका द्वारा जन-जन की आस्था के केन्द्र जैनमुनियों के विरुद्ध लेख प्रकाशित करने पर निन्दा प्रस्ताव, विश्वविद्यालयों में प्राकृत एवं जैन विद्या विषय प्रारम्भ करने विषयक अनेक प्रस्ताव पारित किये गये । अधिवेशन में परिषद् द्वारा विद्वानों को पुरस्कृत किया गया एवं आगामी पुरस्कारों की घोषणा की गयी। चंदेरी समाज ने सभी विद्वानों का भावभीना स्वागत किया ।
42 जून - जुलाई 2008 जिनभाषित
Jain Education International
पं. विनोदकुमार जैन रजवाँस
संयुक्त मंत्री- अ. भा. दि. जैन शास्त्री परिषद्
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org