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ग्रन्थ-समीक्षा
आत्मानुशासन
समीक्षक : प्राचार्य अभयकुमार जैन
मूललेखक- महाकवि आ.श्री गुणभद्रजी, पद्यानुवाद-गुणोदय- महाकवि आ.श्री विद्यासागर जी, अन्वयार्थ एवं भद्रार्थ- आर्यिका रत्न मृदुमति माताजी, संयोजन-बालब्रह्म- बहिन श्री पुष्पा दीदी (रहली), संस्करणप्रथम सन् २००८ (बीना चातुर्मास), मूल्य- आत्मनुशासन, प्रकाशक- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटनागंज (रहली) जिला. सागर म.प्र.
प्राप्तिस्थान- १. चौधरी अरविन्दकुमार सुरेशकुमार जैन, आजाद कटपीस सेन्टर,राव मार्केट, रहली जिला- सागर (म.प्र.) मो. ९३२९४१२९१२, ९३२५६९१११५
२. ब्रह्म. सुषमा दीदी, अरहन्त कोल डिपो, लिंक रोड, सागर (म.प्र.) मो. ९८२७६६८९१६
३. कु. सविता जैन पुत्री श्री महेन्द्रकुमार जैन, डॉ. श्रीवास्तव के मकान के पीछे, आजादपुरा ललितपुर (उ.प्र.) मो. ९३०५५५३७८९
समीक्ष्य कृति 'आत्मानुशासन आचार्यश्री जिनसेन । शान्ति और सन्तोषकारक है। के परम शिष्य प्रखर तपस्वी, बालब्रह्मचारी अतिशय आत्मानुशासन पर संस्कृत में श्री प्रभाचन्द्राचार्य की गुरुभक्त, सिद्धान्त-न्याय, व्याकरण-दर्शन, आयुर्वेद आदि | टीका तथा ढूंढारी भाषा में पं. श्री टोडरमल जी की अनेक विषयों के पारंगत संस्कृतभाषा के श्रेष्ठ कवि ईस्वी | भाषा वचनिका प्रकाशित हैं। आ. श्री विद्यासागर जी ने सन् की ९वीं शताब्दी के अपूर्व विश्रुत विद्वान् सेनसंघ | भी इसका हिन्दी पद्यानुवाद 'गुणोदय' नाम से किया है। के आचार्य श्रीगुण-भद्राचार्य की अमूल्य शिक्षाओं से परिपूर्ण | छिन्दवाड़ा निवासी पं. श्री अभयकुमार जी शास्त्री ने भी अमरकृति है। धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र और सूक्तिकाव्य-तीनों | श्री टोडरमलजी की वचनिका का हिन्दी भाषानुवाद तथा ही दृष्टियों से उत्कृष्ट, सुभाषितों से परिपूर्ण एक अपूर्व | आत्मानुशासन का पद्यानुवाद किया है, परन्तु ऐसी अमूल्य आध्यात्मिक रचना है। इसमें आत्मा को अनुशासित करने | एवं उपयोगी कृति का अन्वयार्थ सहित भावार्थ का प्रकाशन की, आत्मा को जीतने की, आत्मजयी बनने की | अभी तक देखने में नहीं आया था। इसके अभाव में आत्महितकारी शिक्षा दी गई है। संसार-ताप-संतप्त | जिज्ञासु पाठक संस्कृत पद्यों का अर्थ हृदयंगम नहीं कर विषयासक्त प्राणियों को विषयों से विरक्त कर आत्महित | पाते थे। प्रस्तुत प्रकाशन का वैशिष्टय यही है कि आ. के लिए प्रेरित करना ही इसका प्रयोजन है। अनादिकालीन श्री विद्यासागर जी की परम विदुषी शिष्या १०५ आर्यिकारत्न विषयासक्ति का विरेचन करने के लिए यह कृति रामबाण | श्री मृदुमति माता जी ने प्रेरणादायी 'वैराग्य-संबर्द्धक' औषधि है। इसके विविध पद्य रंग-बिरंगे फूलों की तरह | इस अमरकृति का अन्वयार्थ और भद्रार्थ (भावार्थ) ज्ञान और वैराग्य की सुगन्धि (खुशबू) सर्वत्र बिखेरते लिखकर जिज्ञासु पाठकों को यह कृति बड़ी सरल और हैं। अध्यात्म के शिखर पर आरोहण के लिए यह सोपान- बोधगम्य बना दी है। इसके पठन-पाठन और स्वाध्याय समान है।
से सामान्य जन भी स्वाध्याय में रुचिवन्त होकर वैराग्य इसके सतत् स्वाध्याय से ज्ञानावरण के क्षयोपशम | एवं आत्मकल्याण के प्रशस्त पथ पर अग्रसर होकर ज्ञान के साथ ही चारित्रमोहनीय कर्म का भी क्षयोपशम तथा | और वैराग्य का लाभ प्राप्त कर सकेंगे। आत्मानुशासन विषयों से विरक्ति होने के साथ-साथ नये संवेग का | का सरल और स्पष्ट अन्वयार्थ और भावार्थ लिखकर जागरण होता है। अतिचारों की शुद्धि, परिणामों में विशुद्धि | वन्दनीय पूज्य माताजी ने पाठकों और स्वाध्याय प्रेमियों और तपों में वृद्धि होने के साथ-साथ धर्म और धर्म | पर बड़ा उपकार किया है। इसी प्रकाशन में आ. श्री के फल में प्रीति भी पैदा होती है। अतः मुमुक्षुओं के | विद्यासागर जी के पद्यानुवाद 'गुणोदय' को भी मूलसंस्कृत लिए परम उपकारक तथा सामान्यजन के लिए सुख- | पद्यों के नीचे प्रकाशित किया गया है।
जून-जुलाई 2008 जिनभाषित 43
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