________________
कृत कायोत्सर्ग है। बाहु नीचे छोड़कर चार अंगुल मात्र | उच्छवासःस्युस्तनूत्सर्गे नियमान्ते दिनादिषु। का अन्तर दोनों पैरों में रखकर निश्चल खड़े होना शरीर पंचस्वष्टशतार्धत्रिचतुःपंचशतप्रमाः॥ ७२ ॥ के द्वारा कायोत्सर्ग है।
___ अनगारधर्मामृत निक्षेपों की अपेक्षा कायोत्सर्ग के छह भेद हैं
अर्थात् दिनसंबंधि-कायोत्सर्ग में एक सौ आठ, १. नाम कायोत्सर्ग- सावध नाम करने से लगे | रात्रिसंबंधि-कायोत्सर्ग में चौवन, पाक्षिक में तीन सौ, हुए दोषों की विशुद्धि के लिये कायोत्सर्ग किया जाता | चातुर्मासिक में चार सौ और वार्षिक कायोत्सर्ग में पाँच है या किसी का नाम कायोत्सर्ग रखना नामकायोत्सर्ग | सौ उच्छ्वास होते है।
मूत्रोच्चाराध्वभक्तार्हत्साधुशय्याभिवन्दने। २. स्थापना कायोत्सर्ग- पाप पूर्ण स्थापना से लगे पंचाना विंशतिस्ते स्युः स्वाध्यायादौ च सप्तयुक्॥७३॥ हुए दोषों की विशुद्धि के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता
अनगार धर्मामृत है अथवा कायोत्सर्गपरिणत प्रतिबिम्ब स्थापना कायोत्सर्ग ____ अर्थात् मूत्र और मल का त्याग करके, एक गाँव
से दूसरे गाँव पहुँचने पर, आहार करने पर, अर्हत् शय्या ३. द्रव्य कायोत्सर्ग- सावद्य द्रव्य के सेवन से लगे | (निर्वाणकल्याण, समवशरण, केवलज्ञान उत्पत्ति, तपअतिचारों की विशुद्धि के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता | कल्याणक एवं जन्मभूमि आदि स्थान) और साधुशय्या है, वह द्रव्य कायोत्सर्ग है।
(किसी साधु के समाधिस्थान) पर जाकर लौटने पर ४. क्षेत्र कायोत्सर्ग- सावध क्षेत्र के सेवन से लगे | पच्चीस उच्छवास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिए। मन दोषों की विशुद्धि के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता | में विकार उत्पन्न होने पर तत्क्षण सत्ताईस उच्छवास है, वह क्षेत्र कायोत्सर्ग है।
| प्रमाण, प्राणीवधसंबंधी, असत्यालापसंबंधी, चोरी संबंधी, ५. काल कयोत्सर्ग- सावध काल में आचरण करने | मैथुन संबंधी, परिग्रह संबंधी, दोष लगने पर एक सौ "से लगे हुए दोषों की विशुद्धि के लिए किया गया कायोत्सर्ग | आठ उच्छवास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिए। काल, कायोत्सर्ग है। अथवा कायोत्सर्ग करनेबालों से सहित | कायोत्सर्ग का काल काल को कालकायोत्सर्ग कहते हैं।
कायोत्सर्गस्य मात्रान्तर्मुहूर्तोऽल्पा समोत्तमा। ६. भाव कायोत्सर्ग- मिथ्यात्वादिसंबंधी अतिचारों
शेषा गाथात्र्यंशचिन्तात्मोच्छ्वासै कथा मिता॥७१॥ के शोधन के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है, वह
अनगार धर्मामृत भावकायोत्सर्ग है, अथवा कायोत्सर्ग करनेवाले शास्त्र का
अर्थात् कायोत्सर्ग का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और जो ज्ञाता उस शास्त्र में उपयुक्त है, वह आगमभाव
उत्कृष्ट काल एक वर्ष प्रमाण है। शेष अर्थात् मध्यम कायोत्सर्ग है।
काल का प्रमाण गाथा (णमोकार मंत्र) के तीन अंशों कायोत्सर्ग की संख्या और उसके श्वासोच्छवास
के चिन्तन में लगनेवाले उच्छवासों के भेद से अनेक अष्टाविंशतिसंख्यानाः कायोत्सर्गा मता जिनैः।।
प्रकार हैंअहोरात्रगताः सर्वे षडावश्यककारिणाम्॥६६॥
__ अष्टतोत्तरशतोच्छवास: कायोत्सर्गः प्रतिक्रमे। (अमितगतिश्रावकाचार) सान्ध्ये प्राभातिके चार्धमन्यस्तत्सप्तविंशतिः॥ ६८॥ अर्थात् छहों आवश्यक करनेवालों के दिन और
अमितगति श्रावकाचार ___ रात्रि संबंधी सर्व कायोत्सर्ग अट्ठाईस कहे हैं।
अर्थात् सान्ध्य (सायं काल) संबंधी प्रतिक्रमण करते स्वाध्याये द्वादश प्राज्ञैर्वन्दनायां षडीरिताः।
समय एक सौ आठ श्वासोच्छ्वासवाला कायोत्सर्ग किया अष्टौ प्रतिक्रमे योग भक्तौ तौ द्वावुदा हृतौ॥ ६७॥ |
जाता है। (अमितगतिश्रावकाचार)
प्रभातकालसंबंधी प्रतिक्रमण में उससे आधा अर्थात् अर्थात् स्वाध्याय करने में बारह, वन्दना में छह,
चौवन श्वासोच्छवासवाला कायोत्सर्ग कहा गया है एवं , प्रतिक्रमण करते समय आठ, और योग भक्ति करते समय ।
| अन्य सर्व कायोत्सर्ग सत्ताईस श्वासोच्छवास कालप्रमाण __दो कार्योत्सर्ग कहे हैं।
कहे गये हैं। - जून-जुलाई 2008 जिनभाषित 31
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only