Book Title: Jinabhashita 2006 12 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 4
________________ सम्पादकीय दिगम्बर जैन परम्परा को मिटाने की सलाह वर्तमान समय में कुछ आधुनिक शिक्षा प्राप्त नई सोच के दिगम्बर जैन भी ऐसे हैं, जो दिगम्बर जैन मुनियों का नग्न रहना उचित नहीं मानते। इसके पीछे उनका प्रमुख तर्क है 'आज की परिस्थितियाँ', 'बदली हुई परिस्थितियाँ', 'वर्तमान क्षेत्र और काल की परिस्थितियाँ।' वे मानते हैं कि आज की बदली हुई परिस्थतियों में दिगम्बर जैन मुनियों को कम से कम एक वस्त्र पहिनकर बस्तियों में आना चाहिए। इसके समर्थन में वे पत्रिकाओं में लेख लिखकर और महात्मा गाँधी जैसे प्रसिद्ध परुष के विचार प्रस्तत कर एक वातावरण सा निर्मित कर रहे हैं। ३१ मई १९३१ की 'नवजीवन' नामक पत्रिका में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने दिगम्बरत्व के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा था कि दिगम्बर जैन मुनियों को नग्नावस्था में शहर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। 'नवजीवन' में प्रकाशित ये विचार सारनाथ के दिगम्बरजैन चिन्तक-लेखक श्री जमनालाल जी ने 'शोधादर्श' में प्रकाशनार्थ भेजे थे, जिन्हें सम्पादक ने “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सामयिक और समीचीन प्रतीत होते हैं" इस टिप्पणी के साथ 'शोधादर्श'-५५ (मार्च २००५ ई०) में प्रकाशित किया था। इससे प्रेरित और प्रोत्साहित होकर दिगम्बर आम्नाय के आधुनिक विद्वान् डॉ० अनंग प्रद्युम्न कुमार, श्री जमनालाल जैन, सुश्री लीना विनायकिया तथा डॉ० अनिलकुमार जैन ने लेख लिखकर गाँधीजी के उक्त विचार का समर्थन किया है। वे लिखते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए दिगम्बरजैन मुनियों को एक वस्त्र पहनकर विहार करना चाहिए। इनके लेख शोधादर्श-५६ (जुलाई २००५) तथा शोधादर्श-५८ (मार्च २००६) में प्रकाशित हुए हैं। इन सबके दिगम्बरजैन होने का उल्लेख डॉ० शशिकान्त जी ने किया । है। (शोधादर्श-५९ / जुलाई २००६ / पृ. ५३)। डॉ० अनंग प्रद्युम्न कुमार लिखते हैं- "मेरे विचार से दिगम्बर मुनियों को पुरानी परम्परा से मुक्त होकर नये सन्दर्भो के अनुरूप चर्या में वांछित संशोधन करना चाहिए। अब तक के दीक्षित दिगम्बर-वेषी मुनि, आचार्य जिनकल्पी मुनि होकर मोक्ष-साधना के लक्ष्य से या तो स्थानकवासी होकर किसी एक जगह ठहर जायँ या मुनियों की नयी पौध के साथ स्थविरकल्पी होकर आहार-विहार के समय एक वस्त्र का चोगा धारण करें तो अच्छा है। यह लोचशीलत वर्तमान जैन संघ के लोकोपयोगी भविष्य के लिए बहत जरूरी है।" (शोधादर्श-५६/प्र.२२)। डॉ० अनिल कुमार जैन ने अपने विचार इन शब्दों में प्रकट किये हैं- "यहाँ एक बात विचारणीय है कि देश और काल की परिस्थिति देखते हुए क्या दिगम्बर साधुओं को भी नग्न रहते हुए विहार करना उचित है? --- क्या आज की चकाचौंध एवं ग्लैमरयुक्त (मोहकता से भरी) दुनिया में यह उचित है? इस मुद्दे पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए। पहले नग्न साधु जंगलों में रहते थे, लेकिन आज जंगलों का अभाव है तथा साधु अब बस्तियों में रहते हैं, बड़ेबडे शहरों तथा महानगरों में रहते हैं। इन महानगरों में पश्चिमी सभ्यता का खुला प्रदर्शन भी होता है। मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता, कैटरॉक तथा फैशन-शो आये दिन के कार्यक्रम हैं। टेलीविजन पर कामुकतायुक्त धारावाहिकों का प्रसारण प्रकार की परिस्थिति में साधओं में भी कदाचित दोष लग सकता है। और यदि हम यह माने वि ये साधु काम, क्रोध से मुक्त हो गये हैं तथा ये सब परिस्थितियाँ उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकतीं, तब भी हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि चलो माना कि ये साधु काम-क्रोध से मुक्त हो गये हैं, लेकिन आज के ग्लैमरयुक्त संसार की आम जनता तो और अधिक उसमें लिप्त हो गयी है। उनके विकारभाव तो हैं ही। शहरों और महानगरों में नग्न साधु भ्रमण कर आम जनता के विकारभावों को उत्तेजित करने में माध्यम क्यों बनें? यदि उन्हें नग्न रहना है, तो शहरों तथा महानगरों में भ्रमण बन्द करना चाहिए। और यदि उन्हें इस प्रकार का भ्रमण करना है, तो मात्र एलक अवस्था तक ही त्याग करना चाहिए।" (शोधादर्श -५८ / मार्च २००६ ई. / पृ. ३४)। 2 दिसम्बर 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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