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की बात करते हैं? अगर नहीं तो आप इतने बड़े समुदाय को, जो उपर्युक्त पूजा-अर्चना करता हो, उसको अनदेखा कैसे कर सकते हैं ? कृपया भूतकाल में जो हमारे समाज में चलन था, उसके ऊपर भी एक दृष्टि डालें । राजा-महाराजा, उनके मंत्री और धनाढ्य व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों के साथ, जिनमें उनकी पत्नियाँ, मातायें, बहिनें और पुत्रियाँ " भी सम्मिलित रहती थीं, ऐसे साधुओं के दर्शन-पूजन के लिये जाते थे, जो समाधि के समय पूर्ण नग्न स्थित होते थे । रानियाँ और राजकुमारियाँ उनके पैरों की मालिश या शरीर का प्रक्षालन करने में अपना सौभाग्य समझती थीं। यदि ऐसे किसी संत को वे अपने यहाँ भोजन करा लेते थे, तो वे अपने आप को अत्यन्त गौरवान्वित महसूस करते थे । इतिहास से विदित होता है कि आर्य सम्राट् इतिहास पुरुष चन्द्रगुप्त, जैन थे जिन्होंने, न केवल नग्न जैन संतों की पूजा-अर्चना की, बल्कि स्वयं भी जैन संत बन गये। श्रेणिक, मगध के सम्राट् थे । वे भी दिगम्बररूपधारी भगवान् महावीर के चरणों में बैठकर उनकी तथा अन्य नग्न दिगम्बर साधुओं की पूजा-अर्चना करते थे। उनकी महारानी दिगम्बर साधुओं की भक्त थीं और उनकी पूजा-अर्चना और सेवा में संलग्न रहती थीं। उसी प्रकार सम्राट् अमोघवर्ष दिगम्बर मुनि बन गये थे। मेरे प्रिय मित्र ! क्या आप नहीं सोचते कि ये सभी सम्राट् और महारानियाँ एक समाज के अंग थे। क्या आपकी दृष्टि में वे सब पागल थे ? यदि आपने भारत के प्राचीन इतिहास का अध्ययन किया हो, तो आप पायेंगे कि न केवल भगवान् महावीर बल्कि अन्य अनेक धर्मगुरु जैसे मंखलि गोशाल और पूरन कश्यप पूर्ण दिगम्बर वेश में विचरण करते थे और किसी को भी उनके व्यवहार से क्षोभ या भय पैदा नहीं हुआ।
जैन नीतिशास्त्र और आचारशास्त्र हमें इतनी प्राचीन परम्परा से प्राप्त हुए हैं, जिसकी थाह पाना संभव नहीं है। और ऐसा कोई भी स्वराज्य, स्वराज्य नहीं कहला सकता, जो उन परम्पराओं में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की कोशिश करे। ब्रिटिश सरकार ने भी, जब वह यहाँ सत्ता में आई, उन धार्मिक सिद्धान्तों और परम्पराओं में कोई परिवर्तन नहीं किया था ।
मेरे प्रिय मित्र ! जिस स्वराज्य को प्राप्त करने का आप प्रयत्न कर रहे हैं, उसकी प्राप्ति के पूर्व ही आपने अपने इस मंतव्य को प्रकट कर दिया है कि जैन संतों को अपनी प्राचीन परम्परा को छोड़ना होगा। क्या आप गम्भीर हैं ि हमारे लिये ऐसे स्वराज्य की कोई कीमत होगी ? और क्या आपने हिन्दुओं से इस सम्बन्ध में राय ले ली है कि वे अपने सभी नग्न संतों को बाहर कर देंगे और उन सभी मन्दिरों के उन दृश्यों को नष्ट कर देंगे जिनमें नग्नता प्रदर्शित है ?
मेरे प्रिय आदरणीय मित्र ! सम्भवतया आप का विचार हो सकता है कि मुस्लिम धर्म, जिसके माननेवालों की संख्या अधिक है, नग्न साधुओं के विचरण के विरुद्ध हो और उनके विचारों का भी सम्मान करना चाहिए। मेरे अच्छे मित्र, सबसे पहले तो मैं आपसे यह जानना चाहूँगा कि क्या उन्होंने आपको उनके प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया है। और दूसरी बात कि यदि मैं आपके स्थान पर होता तो अपनी राय बनाने के पूर्व सारे तथ्यों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करता। शायद आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुस्लिम धर्म में नग्न संतों (दरवेशों) का हमेशा बहुत आदर किया जाता है। अबू कासिम गिलानी एक ऐसे ही मुस्लिम संत थे, जो दिगम्बर मुद्रा में ही विचरण करते थे - सम्पूर्ण निरावरण अवस्था में । उच्च दर्जे के मुस्लिम संत पूर्ण रूप नग्न ही रहते हैं, उन्हें 'अब्दुल' कहा जाता है, वे देश में कहीं भी उसी अवस्था में विचरण करते हैं । (मिस्टीशिज्म एण्ड मेजिक इन टर्की, द्वारा एल. एम. जे. गारनेट) । मौलाना रम, जिनकी 'मसनवी' को ईरान का कुरान कहा जाता है और जिसे कुरान और हदीस के बाद दूसरे स्थान पर मान्य किया जाता है, उन्होंने सन्तों की नग्नता को स्वीकार किया है। उनकी कुछ काव्य पंक्तियाँ उन पुस्तकों में मिलती हैं, जिन्हें इस पत्र के अंत में उल्लिखित किया जा रहा है। ये तथ्य इस मान्यता का खण्डन करते हैं कि मुस्लिमसंस्कृति संतों की नग्नता के विरुद्ध है। इसलिए यदि इस प्रश्न को अभी दरकिनार भी कर दिया जाय कि क्या एक समुदाय अपनी मान्यताओं को दूसरे समुदाय पर थोप सकता है, तो भी मुस्लिम संस्कृति से आपके मत या विचारों को कोई समर्थन प्राप्त नहीं होता ।
आपने अपने विचारों को सुन्दर, सुरम्य ढंग से प्रस्तुत कर यह बताने का प्रयत्न किया है कि संतों को अपना संतत्व छोड़ देना चाहिए, जिसे वे अपनी अतीत की मान्यताओं और परम्पराओं से अब तक पालन करते आ रहे हैं। मेरे
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दिसम्बर 2006 जिनभाषित 11
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