Book Title: Jinabhashita 2006 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 12
________________ विचारों के समर्थन में आपके अविवेकपूर्ण विचारों (impolitic notions) को पढ़कर मुझे अत्यन्त दुःख हुआ है। सरदार वल्लभभाई पटेल निश्चित रूप से राष्ट्रीय नेता हैं और सत्याग्रह के संबंध में उनके विचारों को ऐसा कोई व्यक्ति चुनौती नहीं दे सकता, जिसने राष्ट्र की उनके बराबर नि:स्पृह सेवा न की हो। परन्तु व्यायाम में निपुण व्यक्ति चाहे कितना भी अपने विषय का जानकार हो, वह आर्युविज्ञान और शल्य-चिकित्सा विषय पर अपने विचार अधिकारपूर्वक प्रकट नहीं कर सकता। ठीक इसी प्रकार सरदार पटेल को, जिन्हें संतों को नग्नता के बारे में समीचीन ज्ञान नहीं है, अपने विचार बिना सोचे-समझे प्रगट नहीं करना चाहिए थे। जहाँ तक आपका प्रश्न है, आप आज विश्व के माने हुए ऐसे व्यक्ति हैं, जिनका कोई मुकाबला नहीं है। परन्तु मेरा मानना है कि अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा आप यह भली भाँति समझते हैं कि जैनदर्शन को ठीक से समझने के लिये जीवन भर अध्ययन करना आवश्यक है और उसे सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिये वैज्ञानिक, बौद्धिक और कुशाग्र दृष्टिकोण होना अपेक्षित है। इस पत्र में यदि मैं आपके विचार और संयोगवश सरदार पटेल के विचारों की समालोचना विस्तृत रूप से करूँ तो मुझे आशा है आप ऐसा करने के लिये अपनी स्वीकृति प्रदान करेंगे। ___ यदि सरदार पटेल ने जो कुछ कहा है, वह सही है, तो फिर क्या इसका अर्थ यह होगा कि स्वराज्य मिलने के उपरांत जैन अपने धर्म को पालने के लिये, कम से कम नग्न साधु विहार के लिये, स्वतंत्र नहीं रहेंगे? सामाजिक मान्यतायें समय-समय पर बदलती रहती हैं, परन्तु धर्म के मौलिक सिद्धान्तों में कोई परिवर्तन नहीं होता। अगर इनमें परिवर्तन होने लगे, तो वे सिद्धान्त सही और सत्य नहीं रह सकते। वर्तमान में समाज में एक ओर जहाँ आमोद-प्रमोद और छिछोरापन है, वहीं दूसरी ओर राजनीति और धन-सम्पत्ति के प्रदर्शन का माहौल है। धर्म को लगभग भुला दिया गया है। क्या आप इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्थाओं से या उनकी मान्यताओं से मार्गदर्शन लेना पसन्द करेंगे ? क्या आप चाहेंगे कि धर्म के मूल सिद्धान्तों में विकृतियाँ या कलुषता आने दी जावें, क्योंकि समाज इस समय संतों की नग्नता को अच्छा नहीं मान रहा है; या आप चाहेंगे कि समाज की मान्यतायें धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार बनाई जावें क्योंकि धर्म के मल सिद्धान्त ही सर्वोत्कष्ट हैं? क्या आप नहीं मानते कि आर्य स भिन्न है, क्योंकि आर्य सभ्यता चार आदर्शों पर आधारित है, वे आदर्श हैं - धर्म, अर्थ (सम्पत्ति-अर्जन), काम (भोग) और मोक्ष । जबकि अनार्य सभ्यता केवल दो आदर्श मानती है और वे हैं - अर्जन और भोग । क्या आप चाहेंगे कि अनार्य सभ्यता उस आर्य सभ्यता का स्थान ग्रहण कर ले, जो उच्च आदर्शवादी है ? __और जहाँ तक जैनों का प्रश्न है, क्या वे अपने आप में एक समाज नहीं हैं ? वे जैन, संतों की नग्नता को सर्वोत्कृष्ट और वन्दनीय मानते हैं। वे उनकी पूजा करते हैं। क्या उनकी पूरी तरह उपेक्षा कर दी जावेगी? ओं में भी नग्न संत होते हैं, जो शहरों में हजारों की संख्या में, जहाँ चाहें वहाँ गमन करते हैं और उनकी पूजा-उपासना सभी वर्गों के द्वारा, जिनमें महिला और बालिकायें भी सम्मिलित हैं, की जाती है। और उस वर्ग के बारे में क्या कहा जाय, जो मंदिर में जाकर शिवलिंग की पूजा अर्चना करते हैं, जिसमें स्त्री-पुरुष दोनों को प्रत्यक्ष कामविषय का सेवन करते हुए दर्शाया गया हो? पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलायें और जवान लड़कियाँ भी पत्थर के शिवलिंग और योनि पर जलाभिषेक करती हैं और हरे पान के पत्ते आदि अर्पित करती हैं। और उड़ीसा में पुरी के महान जगन्नाथ मंदिर के गुम्बज में जो चित्र बने हुए हैं, जहाँ सभी वर्ग के हिन्दू परिवार लाखों की संख्या में पूजन के लिये एकत्रित होते हैं, उनके बारे में क्या कहा जाय ? सम्भव है कि आपके परिवार और सरदार पटेल के परिवार के सदस्यों ने शिवमंदिर में पूजा अर्चना की होगी और हो सकता है, कुछ सदस्य पुरी के जगन्नाथ मंदिर भी गये हों। __ क्या आप चाहेंगे कि मैं पुरी के मन्दिर के विशेष पहलुओं पर कुछ प्रकाश डालूँ ? मंदिर के चारों ओर बिना किसी आवरण के ऐसी मानव आकृतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें वास्तविक काम-सेवन के दृश्य प्रदर्शित किये गये हैं ? क्या हिन्दू समुदाय को अपने नग्न संतों से या मन्दिरों में काम-सेवन के दृश्य-प्रदर्शन से या पुरी की आवरणरहित कामकृत्यों में संलग्न मानव आकृतियों को देखकर क्षोभ पैदा होता है ? हिन्दुस्तान में हिन्दू समुदाय की संख्या लगभग २५,००,००,००० है । आप जब समाज की बात करते हैं तो क्या आप २५ करोड़ हिन्दुओं के प्रतिनिधित्व 10 दिसम्बर 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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