Book Title: Jinabhashita 2005 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 5
________________ इन्द्रधनुष जैसी सतरंगी दुनिया सही सलामत है। आँखें उजड़ गईं तो क्या है, सपना सही सलामत है। हाँ, जो चला गया है वह आयेगा नहीं, किन्तु जो बच गया है उसे सहेजना है। जो मौत के मुँह से बच गये हैं उन्हें जीवन जीने लायक बनाना है ताकि वे फिर जीवन जीने की ओर प्रवृत्त हो सकें। मनुष्य की विशेषता है कि वह दुःख को क्षणिक मानकर सुख की तलाश करता है किन्तु यह अवसर सामान्य नहीं बल्कि असामान्य है। जब हमें अपनों के काम आना है। हमारे देश के गौरवशाली प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहनसिंह ने विदेशी सहायता की पेशकश को विनम्रतापर्वक अस्वीकार कर राहत एवं पनर्वास की चनौती को देशवासियों के भरोसे स्वीकार किया है अत: यह हमारा कर्त्तव्य हो जाता है कि हम 'प्रधानमंत्री राहतकोष' में अपना अधिकाधिक आर्थिक सहयोग भिजवायें ताकि हमारे देश की जिजीविषा और परोपकार भावना को संबल मिल सके। मेरा सम्पूर्ण जैनसमाज उसकी समस्त सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों से विनम्र निवेदन है कि वह अपनी भामाशाही छवि को और उजवल बनाते हुए इस राष्ट्रीय विपदा/प्राकृतिक आपदा की घड़ी में सार्थक भूमिका निभायें और अपना एवं अपने समाज का नाम रोशन करें। तेरापंथ समाज की ओर से इक्यावन लाख रुपये दान की घोषणा की गई है। समाज के अन्य घटकों को भी इसका अनुकरण करना चाहिए। जहाँ-जहाँ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित होने वाले हैं वहाँ-वहाँ प्रतिदिन एक बोली का धन भी सुनामी लहर पीड़ितों के नाम किया जाय तो अनेक टूटे-फूटे-उजड़े घर बस सकते हैं। इन महोत्सवों में एक दानपेटी 'सुनामी सहायता' के नाम की रखी | जैन और जैनत्व की अहिंसा, जीवदया, परोपकार, करूणा, दानशीलता में एक स्वर्णिम पृष्ठ और जुड़ेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। हमारा तो मानना है देख यूँ वक्त की दहलीज से टकरा के न गिर। रास्ते बंद नहीं सोचने वालों के लिए। डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' फिट रहने के उपाय D अपनी व्यस्त दिनचर्या में से प्रतिदिन कम से कम पंद्रह मिनिट का समय अपने लिए अवश्य निकालें। यह समय आप आत्मविश्लेषण में लगायें। 0 पानी शरीर के लिए अति महत्वपूर्ण है अत: दिनभर में खूब पानी पियें। यह आपके शरीर से विषैले पदार्थों को निकालकर शुद्धिकरण करता है। आपके पत्र दिसम्बर 2004 का 'जिनभाषित' अंक प्राप्त हुआ। सम्पादकीय "दूरदर्शन पर जिनशासन के चीरहरण का दोषी कौन?" आद्योपांत पढ़ा। सम्पादक महोदय ने उभयपक्षों का समन्वय लेखनी के द्वारा प्रस्तुत कर अति प्रशंसनीय कार्य किया है। सम्पादक महोदय ने उन सभी पक्षों के यथार्थ परीक्षण हेतु जाँच समिति बनाये जाने की बात लिखी है, जो कि उचित है। मुझे इस बात का अफसोस है कि शिथिलाचार पर हमारे पत्रकार जितना लिख रहे हैं, रुकने की बात दूर की है, नित प्रति बढ़ ही रहा है। समाज के हर वर्ग को गम्भीरता से विचार कर कुछ सार्थक कदम उठाना चाहिए। ब्र. संदीप 'सरल' अनेकान्त ज्ञान मन्दिर, शोध संस्थान, बीना, मप्र 0 कुछ पल चिंतन के लिए निकालें। यह आपको तनावमुक्त तो करेगा ही, साथ ही आपकी उदासी व आलसीपन को भी दूर भगाने में सहायक होगा। 0 सफाई पर संपूर्ण ध्यान दें। शरीर की सफाई के साथ-साथ रसोईघर की सफाई पर भी विशेष ध्यान दें। 0 अपने प्रतिदिन के भोजन में विटामिन, खनिज लवण व प्रोटीन तत्वों से युक्त पदार्थों को शामिल करें। जनवरी 2005 जिनभाषित 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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